Wednesday 27 April 2016

जाम शायरी के

यूँ जाम शायरी के छलकते ही जाये है
अशआर कितने हमने सभी को पिलाये है
हर रिंद उठाता है जब ये हाथ जाम का
पैमाना उनका नग्मों से हम भर के लाये है
रहता है सर-ए-बज़्म मुझे इक खुमार सा
कोई भी मुहब्बत का जब भी गीत गाये है
है फूलों के जैसे लफ्ज़ ही हम ने पिरोये थे
वल्लाह अब ग़ज़ल भी महकती ही जाये है
महफ़िल में वो मिली तो ग़ज़ल ख़ूबतर हुई
उस पर लिखी ग़ज़ल को ही हम गुनगुनाये है

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