Thursday 31 March 2016

मेरे जज़्बात के हर कतरे में

हम रोने का हुनर सीख गए
तुम आकर आँसू में भींज गए
मेरे जज़्बात के हर कतरे में
तुम बहने की अदाएँ सीख गए

फिजा की बिखरी यादों में
फूलों में सँवरे काँटों में
कायनात के दर्द की सोहबत में
हम जीना-मरना सीख गए

शाम की धुंधली राहों पर
गम की अँधेरी रातों पर
ख्वाब के टूटे शीशों पर
मुस्कुरा के चलना सीख गए

जख़्म के पहलू में सोकर
नग़मों को कागज पे लिखकर
अपनों के प्यार से दूर होकर
हम जीवन जीना सीख गए

दिल जो तोड़ा तो किया कोई बुरा काम नहीं

दिल जो तोड़ा तो किया कोई बुरा काम नहीं
जानेमन तेरी मुकम्मल कोई दास्तान नहीं

जो अधूरा हो मगर फिर भी पूरा लगता हो
सिवाय इश्क के है ऐसा कोई मुकाम नहीं

मंजिलों के लिए मरते हैं वो मुसाफिर ही
जिनके सर पे आवारगी का इल्ज़ाम नहीं

कभी छोटी सी एक बात बुरी लगती थी
आज कितनी भी बड़ी बात से परेशान नहीं

कोई तू राह बता कैसे मैं बेवफाई करूँ

इस मुहब्बत में तुमको मैं खुशी दे न सकी
कोई तू राह बता कैसे मैं बेवफाई करूँ
दर्द के शोलों को हवा दी हमने तेरे दिल में
इन गुनाहों से तोबा अब मैं कैसे करूँ

खता-ए-इश्क से बस तेरी इबादत की है
ऐसा लगता है तेरी ही शहादत दी है
तू जो रोता है इतना मेरे ख़यालों में
तेरे आँसू को देखने की सज़ा मैं कैसे सहूँ

तेरे हर जख़्म का इल्ज़ाम मेरे सर पे है
तेरे हर दाग का अहसास जिगर पे है
तेरे दामन में चुभे दर्द-ए-नश्तर की कसम
मुझपे जो बीत रही है, उसे मैं कैसे कहूँ

ऐ मेरे इश्क, मेरे हुस्न पे मरनेवाले
ओ दीवाने मेरी याद में जलनेवाले
मेरी राहों में पत्थर की दीवारें हैं
इन दीवारों के अहसानों को मैं कैसे तोड़ूँ

तुम मेरे दर्द को मिटा दोगी एक दिन

अपने दिल के सनमखाने के हर जर्रे पे
आँसुओं से तेरे नाम लिखे हैं हमने
ये ख़ामोशी और दर्द के अफ़साने
कोरे कागज़ पे सजाए हैं हमने

ये जो पत्थर के बेदिल मकान हैं
इस दुनिया की गलियों के श्मशान हैं
तन्हाई के जिंदादिली के साये में
तुमको ख़यालों में बसाए हैं हमने


राहों के मुकद्दर में कई मुसाफिर हैं
पर मेरी पगडंडियों पे तू अकेली है
इस भीड़ भरी अंधेर नगरी में
तेरे नूर के माहताब जलाए हैं हमने

मेरी दीवानगी छलक न जाए आंखों से
हम हर फुगां को दिल में दबा लेते हैं
तुम मेरे दर्द को मिटा दोगी एक दिन
इसी उम्मीद में जख्म संभाले हैं हमने

Wednesday 30 March 2016

रात आती है तेरी याद चली आती है

रात आती है तेरी याद चली आती है
किस शहर से तेरी आवाज चली आती है

चाँद ने खूब सहा है सूरज की अगन
तेरी ये आग मुझसे न सही जाती है

दिल में उतरी है तेरी दर्द भरी आँखें
मेरी आँखों में वही प्यास जगी जाती है

हमने देखा था खुद को तेरी सूरत में
आईना देखकर अब रात कटी जाती है

पहले तो अपने दिल की रज़ा जान जाइए

पहले तो अपने दिल की रज़ा जान जाइए;
फिर जो निगाह-ए-यार कहे मान जाइए;
पहले मिजाज़-ए-राहगुजर जान जाइए;
फिर गर्द-ए-राह जो भी कहे मान जाइए;
कुछ कह रहीं हैं आपके सीने की धड़कनें;
मेरी सुनें तो दिल का कहा मान जाइए;
इक धूप सी जमी है निगाहों के आसपास;
ये आप हैं तो आप पे कुर्बान जाइए;
शायद हुजूर से कोई निस्बत हमें भी हो;
आँखों में झांककर हमें पहचान जाइए।

दिल का दर्द ज़बाँ पे लाना मुश्किल है


दिल का दर्द ज़बाँ पे लाना मुश्किल है
अपनों पे इल्ज़ाम लगाना मुश्किल है

बार-बार जो ठोकर खाकर हँसता है
उस पागल को अब समझाना मुश्किल है

दुनिया से तो झूठ बोल कर बच जाएँ,
लेकिन ख़ुद से ख़ुद को बचाना मुश्किल है।

पत्थर चाहे ताज़महल की सूरत हो,
पत्थर से तो सर टकराना मुश्किल है।

जिन अपनों का दुश्मन से समझौता है,
उन अपनों से घर को बचाना मुश्किल है।

जिसने अपनी रूह का सौदा कर डाला,
सिर उसका उठाना मुश्किल है।

कहाँ चला गया बचपन का वो समाँ

कहाँ चला गया बचपन का वो समाँ यारो! 
कि जब ज़मीन पे जन्नत का था गुमाँ यारो! 

बहार-ए-रफ़्ता  को  अब ढूँढें  कहाँ  यारो! 
कि अब निगाहों में यादों की है ख़िज़ाँ यारो! 

समंदरों की तहों से निकल के जलपरियाँ 
कहाँ सुनाती है अब हमको लोरियाँ यारो! 

बुझा-बुझा -सा है अब चाँद आरज़ूओं का 
है माँद-माँद मुरादों की कहकशाँ यारो! 

उफ़क़ पे डूबते सूरज के खूँ की लाली है 
ठहर गये हैं ख़लाओं के क़ारवाँ यारो! 

भटक गये थे जो ख़ुदग़र्ज़ियों के सहरा में 
हवस ने उनको बनाया है नीम जाँ यारो! 

ग़मों के घाट उतारी गई हैं जो ख़ुशियाँ 
फ़ज़ा में उनकी चिताओं का है धुआँ यारो! 

तड़प के तोड़ गया दम हिजाब का पंछी 
झुकी है इस तरह इख़लाक़ की कमाँ यारो! 

ख़ुलूस बिकता है ईमान-ओ-सिदक़ बिकते हैं 
बड़ी अजीब है दुनिया की ये दुकाँ यारो ! 

ये ज़िन्दगी तो बहार-ओ-ख़िज़ाँ का संगम है 
ख़ुशी ही दायमी ,ग़म ही न जाविदाँ यारो ! 

क़रार अहल-ए-चमन को नसीब हो कैसे 
कि हमज़बान हैं सैयाद-ओ—बाग़बाँ यारो! 

हमारा दिल है किसी लाला ज़ार का बुलबुल 
कभी मलूल कभी है ये शादमाँ यारो ! 

क़दम-क़दम पे यहाँ अस्मतों के मक़तल हैं 
डगर-डगर पे वफ़ाओं के इम्तहाँ यारो! 

बिरह की रात सितारे तो सो गये थे मगर 
सहर को फूट के रोया था आसमाँ यारो!

हम लोगों की हैरानी से डरते हैं

                       अजब हैं लोग थोड़ी सी परेशानी से डरते हैं
कभी सूखे से डरते हैं, कभी पानी से डरते हैं
तब उल्टी बात का मतलब समझने वाले होते थे
समय बदला, कबीर अब अपनी ही बानी डरते हैं
पुराने वक़्त में सुलतान ख़ुद हैरान करते थे
नये सुलतान हम लोगों की हैरानी से डरते हैं
हमारे दौर में शैतान हम से हार जाता था
मगर इस दौर के बच्चे तो शैतानी से डरते हैं
तमंचा ,अपहरण, बदनामियाँ, मौसम, ख़बर, कालिख़
बहादुर लोग भी अब कितनी आसानी से डरते हैं
न जाने कब से जन्नत के मज़े बतला रहा हूँ मैं
मगर कम-अक़्ल बकरे हैं कि कुर्बानी से डरते हैं

इन्सान को इन्सान समझिये

ताकत पे सियासत की ना गुमान कीजिये, 
इन्सान हैं इन्सान को इन्सान समझिये। 

यूँ पेश आते हो मनो नफरत हो प्यार में, 
मीठे बोल न निकले क्यूँ जुबां की कटार से। 

खुद जख्मी हो गये हो अपने ही कटार से, 
सच न छुपा पाओगे अपने इंकार से। 

आँखें  भुला के दिल के आईने में झाकिये, 
इन्सान हो इन्सान को इन्सान ही समझिये। 

कैसी ख़ुशी है आप को ऐसे आतंक से ?
कैसा सकुन बहते हुए खून के रंग से ?

तलवारों खंजरों में क्यूँ किया सिंगार  है, 
आप भी दुश्मन हैं आपके इस जंग में। 

खुद से न सही अपने आप से डरिये, 
इन्सान हो इन्सान को इन्सान समझिये। 

खुद का शुक्र है आप भी इन्सान हैं, 
इंसानियत से न जाने क्यूँ अनजान हैं। 

शुक्र कीजिये की खुदा मेहरबान है, 
वरना आप कौन ? क्या पहचान है। 

सच यही है, अब तो ये जान लीजिये, 
इन्सान हो इन्सान को इन्सान समझिये।

लौटकर आया नहीं

फूल की बातें सुनाकर वो गया,
किस अदा से वक़्त काँटे बो गया ।

गाँव की ताज़ा हवा में था सफ़र,
शहर आते ही धुएँ में खो गया ।

मौत ने मुझको जगाया था मगर,
ज़िंदगी के फ़लसफ़ों में सो गया ।

मेरा अपना वो सुपरिचित रास्ता,
कुछ तो है जो अब तुम्हारा हो गया ।

पा गया ख़ुदगर्ज़ियों का राजपथ,
रास्ता जो भी सियासत को गया ।

सीख तेरी काम आ जाती मगर,
हाथ से निकला जो अवसर तो गया ।

कौन बतलाए हुआ उस पार क्या,
लौटकर आया नहीं है जो गया ।

झूठ सच्चाई का हिस्सा हो गया

झूठ सच्चाई का हिस्सा हो गया
इक तरह से ये भी अच्छा हो गया

उस ने इक जादू भरी तक़रीर की
क़ौम का नुक़सान पूरा हो गया

शहर में दो-चार कम्बल बाँट कर
वो समझता है मसीहा हो गया

ये तेरी आवाज़ नम क्यूँ हो गई
ग़म-ज़दा मैं था तुझे क्या हो गया

बे-वफाई आ गई चौपाल तक
गाँव लेकिन शहर जैसा हो गया

सच बहुत सजता था मेरी ज़ात पर
                                                       आज ये कपड़ा भी छोटा हो गया

आ समन्दर के किनारे पथिक प्यासा रह गया

आ समन्दर के किनारे पथिक प्यासा रह गया,
था गरल से जल भरा होकर रुआंसा रह गया।

था सफर बाकि बहुत मजिल अभी भी दूर थी,
हो गया बढना कठिन घिर कर कुहासा रह गया।

लग रहे नारे हजारो छप रही रोज लाखो खबर,
गौर से जब देखा तो बन तमाशा रह गया।

एक बुत गढ ने लगी अनजान में ही मगर,
हादसा ऐसा हुआ की वह बिन तराशा रह गया।

छोड़ कर आशा किसी का चल पड़ा बेचारा,
आज वादा  लोगो का बस दिलासा रह गया।

जनता का हक़

जनता का हक़ मिले कहाँ से, चारों ओर ‪दलाली है |
‪चमड़े का दरवाज़ा है और ‪कुत्तों की रखवाली है ||

‪मंत्री, नेता, अफसर, मुंसिफ़ सब जनता के सेवक हैं |
ये जुमला भी प्रजातंत्र के मुख पर ‪भद्दी गाली है ||

उसके हाथों की ‪कठपुतली हैं सत्ता के ‪शीर्षपुरुष |
कौन कहे संसद में बैठा ‪गुंडा और मवाली है ||

सत्ता ‪बेलगाम है जनता ‪गूँगी बहरी लगती है |
कोई उज़्र न करने वाला कोई नहीं ‪सवाली है ||

सच को यूँ ‪मजबूर किया है देखो झूठ बयानी पर |
‪माला फूल गले में लटके पीछे सटी ‪दोनाली है ||

‪दौलत शोहरत बँगला गाड़ी के पीछे सब भाग रहे हैं |
‪फसल जिस्म की हरी भरी है ‪ज़हनी रक़बा खाली है ||

‪सच्चाई का जुनूँ उतरते ही हम ‪मालामाल हुए |
हर सूँ यही हवा है ‪रिश्वत हर ताली ताली है ||

वो ‪सावन के अंधे हैं उनसे मत पूँछो रुत का हाल |
उनकी खातिर हवा ‪रसीली चारों सूँ ‪हरियाली है ||

‪पंचशील के नियमो में हम खोज रहे हैं सुख साधन |
चारों ओर ‪महाभारत है दाँव चढ़ी ‪पञ्चाली है ||

पहले भी ‪मुगलों-अंग्रेजो ने जनता का ‪‎खून पिया |
आज 'विप्लवी' भेष बदलकर नाच रही खुशहाली है ||

लुढ़क गए राजनीति की नालियों में लोग

उठाते हैं  तूफा  यहाँ  पर  प्यालियों  में    लोग,
जिनमे खाते छेद करते उन्ही थालियों में लोग।
                   पी -पी कर  सत्ता   की  मदिरा  बेहिसाब,
                   लुढ़क गए राजनीति की नालियों में लोग।
हर्ष के उन्माद में जलाकर किसी का  घर,
खो गये अपनी अपनी दीवालियों में लोग। 
                   चुटकी भर खुशहाली पाने की उम्मीद में,
                   जी  रहे  बरसो  से  बदहालियों   में लोग।
चमन में चुन चुन के जो नोचते है कलियाँ,
उन को भी गिन रहे  है  मालियों  में लोग।
                    नपुंसक भीड़ जुटा  करके अपने आस पास,
                    खुश हो रहे खरीदी हुई  तालियों  में  लोग।
या  जोड़ने में  लोग  खर्च कर देते जिन्दगी,
या बिताते है जिन्दगी रखवालियों में लोग।
                    उजाले में जो बाँटते गरीबो  में अन्न बस्त्र,
                    अँधेरे में शामिल वही मवालियो में  लोग।
कालिख को साफ करने के जरिये बहुत है,
सो लगे है कोयले की दलाली में _______लोग।

हम हँसते है तो दुनियाँ समझती है की हमे गम नहीं

                             हम हँसते है तो दुनियाँ  समझती है की हमे गम नहीं,
    वैसे भी  दुनिया में  गम  दिखाने  वाले कम   नहीं।

   गम  दिखाना भी लोगो ने बना लिया है एक  कम,
   उन्हें क्या मालूम गम में डूबी है मेरी सुबह--शाम।

   हम उन लोगो में से नहीं कि अपना गम दिखाते रहें,
   हम तो दुसरो के गम उठाए  बाटते.............  फिरे।

   दुनिया ने हर वक्त ऐसे लोगो को गलत ही समझा,
   अब  भी  कहते  रहना खुद की    बदौलत  समझा।

   हम दुनियां का कहना क्यों सोचे उनका गम नही,
   क्योकि गम है  पर  गम  दिखाने   वालो में  से हम नहीं।

गम के आँसू

शायद वो आती  थी अब आना भूल गयी,
न जाने क्यू  वो साहिल अपना भूल गई।
                        रास्ता बदल गया वो दूर निकल गई।
                        माना  भूल गयी शायद अपना सपना भूल गई।
इस राह पर मै क्या रहकर  किये जा  हूँ,
कि खुद इस जख्म पर गुमराह किये जा रहा हूँ।
                        जिन्दगी के कुछ स्वप्न बना रखे थे हमने यहाँ,
                        पर   खुद ही खुद को बेकरार किये जा रहा हूँ।
सोच सोच कर खुद जल रहा हूँ मैं यहाँ,
कि ख़ुशी के बदले गम के आँसू  बहा रहा हूँ।

इंसानी चेहरे के पीछे खूनी मंजर देखे है

इंसानी    चेहरे के  पीछे  खूनी   मंजर  देखे  है,
और प्यार के उम्मीदों पर पड़ते पत्थर देखे है।


लहरों के पीछे हो जाना मुशिकल शायद नहीं रहा,
अपनी बस्ती में लोगो   के खौफ़जदा घर देखे  है।


जिसको हमने साथ किया था तन्हाई में चलने को,
न  वक्त में  उनके हाथ  में हमने  खंजर देखे है।


मंजिलो से कदमो को रिश्ता कितना मुश्किल है,
बरसातों में  कच्चे घर  के चुते  छप्पर  देखे   है।


अब तो चलना भी डर लगता है किसको हाथ साथ करे,
राह  बदल कर चलने वाले कितने रहवर देखे है।

जिस बात का डर था

जिस बात का डर था सोचा कल होगी,
जरखेज जमीनों में बिभार फसल होगी।

तफसील में जाने से ऐसा तो नही लगा,
हालात के नक्शों में अब फेरबदल होगो।

स्याही से इरादों की तस्वीर बनाते हो ,
गर ख़ूँ से तस्वीर बनाओ तो असल होगी।

लफ्जो से निपट सकती तो कब की पट जाती,
पेचीदा पहेली है बातो से न हल होगी।

इन अंधक सुरंगों में बैठे है तो लगता है,
बाहर भी अन्धेरे की बदशक्ल नकल होगी।

जो वज्म में आये थे बोल नही सके,
उन लोगो की हाथो में  गजल होगी।

जीने की अरमान नही है

सांसे तो है मगर अब जीने की अरमान नही है,
देखा है जिन्दगी को इस कदर खुद की पहचान नही है।
                 दर्द है बिखरा है जहाँ में यहाँ से वहाँ  तलक,
                 बाँट ले गम थोडा सा ही ऐसा कोई इन्सान नहीं है  ।
खेल कर जी भर आग से कहने लगे है अब तो,
जलते तन मन के लिए बर्फ का सामान नही है।
                 गुल-ए-चमन में जग कर रात रात भर,
                 मायूस हो कहते है वो काँटों का बरदान नही है।
बुझेगी नही प्यास सुरा से,सुन्दरी से औ शबाब से,
जवानी तो दो घडी है हरदम तो इसका एलान नही है ।
                  लुट कर खुद गैर की आबरू दिन दहाड़े ही,
                  कहते है वो आदमी की शक्ल में भगवान नही है।
गवां दी उम्र सारी  मनमानी हरकतों के तहत।
थक गये तो कहते है सर पर आसमान नहीं है।
                  सभल जा अब भी थोडा वक्त है,
                  जिन्दगी की राहों  को समझना आसन नही है।

जिंदगी के सफर में

जिंदगी के सफर में आँखे मुँदे जीये......जा रहे है
जैसे कट जाये सफर काटे...................जा रहे है
ये भी आदत नहीं की बरमला हो मेरे.....रंजो गम
खुदी के जब्त ए होंसला हम जीये.......जा रहे है
जिंदगी भर गम के हरे दाने चुगे है..............हमने
दाम ए सैद में हम बरहम उलझे जा..........रहे है
समंदर के मरक़ज पर डगमगा रहा है सफ़ीना मेरा
समंदर की कैफ़ियत से हम लडे...........जा रहे है
जिंदगी की हसीन गलियो से गुजर..........चुका हूँ मैं
अब दश्त ए वीरानो में जिंदगी के दिन गुजार रहे है
अव्वली चाँद हुआ करते थे हम कभी अपनी कायनात के
टूट कर मुरादी तारो की तरहा किसी शाने में बिखरे जा रहे है
जिंदगी की धूप ढल रहीं है शम्स भी सिंदूरी हो रहा है
अगरचे सिंदूरी सहरे का मुद्दआ लिए जीये जा रहे है

सदाए कैद करूं


सदाए कैद करूं  या आहटे  चुरा  ले जाउ,
महकते जिस्म की खुशबुए चुरा ले जाऊ।
                                तेरी अमानते महफूज रख न पाउँगा,
                                दुबारा लौट के आने का वादा न कर पाउँगा।
बला के शोर है तूफ़ान आ गया शायद,
कहाँ  का वक्त ऐ सफर खुद को ही बचा ले जाऊ।
                                कहना  है दरिया का  यह शर्त हार जायेगा,
                                जो एक दिन में उसे साथ बहा ले जाऊ।
अभी और न जाने कहाँ कहाँ भटकु,
कभी बहाया था दरिया में जो दिया ले जाऊ।

सिक्के के दो पहलू



हर ख़ुशी की आँखों में आँसू  मिले,
एक ही सिक्के के दो पहलू  निकले।
               कौन अपनाता मिला दुर्गन्ध को,
               हर किसी की चाह है खुशबु मिले।
अपने अपने हौसले की बात है,
सूर्य से भिड़ते हुए जुगनू मिले।
              रेत से भी निकल सकता है तेल,
              चाहत है वो कहीं बालू---- मिले।
आँकियें उन्माद -मद -तूफ़ान का,
सैकड़ो उड़ते हुए तम्बू----- मिले।

पत्थर से इन्सान



सोचा था कि अब चला गया हवाओं की  तरह,
गम दुसरे दिन फिर आ गया दीवानों की तरह।

पत्थर से इन्सान  के रिश्ते होते है बड़े अजीब ,
ठोकर किसी ने मारी कोई जल चढ़ा कर गया।

आया तो ऐसा आया नदियों में सैलाबों की तरह,
गया तो ऐसा गया जंगल की दनावल  की तरह।

सोचा था आएगा बिखरे चमन को बसाने के लिए,
पर आया भी तो लहरों  से झोपडी उड़ाने  के लिए।

सोचा की कट  जाएगी जिन्दगी भवरों की तरह,
गम दुसरे दिन फिर आ गया दीवानों  की तरह।

बेनकाब चेहरे




चहरे बेनकाब  हो गए पहचान की जरुरत नहीं,

आदमी बेईमान हो गए नमन की जरुरत नहीं।


अपने ही  नाखुनो   से नोच डाला चेहरा अपना,
चेहरे  पर औरो   के नाखुनो  की जरुरत  नहीं।

खुद  के बोए   काँटे  जब चुभने ....लगे हो  तब ,
उठती टीसों को किसी क्रंदन की जरुरत  नहीं।

तत्पर है लूटने के लिए आदमी आदमी को यहाँ,
घरो  में अब  किसी दरवान    की जरुरत  नहीं।

टूटती सांसो की डोरी से लटक  रही है जिन्दगी,
सांसो  को किसी  स्पंदन  की  जरुरत   नहीं।

सपने प्यार के



आँखों में शोले लिए मैं कहाँ से कहाँ आ निकला,
जो घर जला कर आया वह तो  अपना निकला।
             लोगो ने पागल करार दिया फेके पत्थर मुझपर,
             जब मैं लोगो के घर के बराबर से .......  निकला ,
जहाँ  था फूलों उपवन परिंदे  करते थे गुलजार,
वहीं मौत की वीरानियाँ  लिए श्मशान निकला।
             जिन आँखों में दिखता था कभी सपने प्यार के,
             उन्ही पलको में आँसू ....  का समन्दर निकला।
जिन हाथो के पकड़ सोचा कर लेगे दुनियाँ फतह,
पीछे मुडकर देखा उन्ही  हाथो में खंजर निकला।
             साथ क्यों छोड़ जाते है कुछ कदम चलने के बाद,
             संजोये ... ख्वाब टूट गये जब सामने से निकला।
तुम अगर कभी समझ पाओ तो मुझे भी समझाना,
देवो का नकाब लगाये कातिलो का लश्कर निकला।

मेरे दिल के समन्दर में कभी उतर कर देखा होता

        मेरे दिल के समन्दर में कभी उतर कर देखा होता,
        कभी  प्यार के  दो  बोल  बोलकर ही देखा.....होता.
                                 मेरी वफाओं को मेरी नजर से देखा ही नही,
                                 तुम कभी मुझ से दूर जाकर ही सोचा होता.
        इश्क व मोहब्बत का सागर है ...अथाह,
        कभी तुम इसमें उतर क़र ही देखा होता.
                                 प्यार का मतलब जानने से कुछ पहले,
                                 मेरे साथ दो कदम चल के ही देखा होता.
        मेरे गम को अब तुम क्या महसूस  करोगे,
        मेरे दिल की बगिया में आ क़र ही देखा होता.
                                क्या पता था हम सिर्फ मजाक ही है उनके लिए,
                                मीठी जुबा से हकीकत ही बयाँ क़र दिया.. होता.

कितनी दीवारें उठी हैं एक घर के दरमियाँ

कितनी दीवारें उठी हैं एक घर के दरमियाँ
घर कहीं गुम हो गया दीवारो-दर के दरमियाँ.

कौन अब इस शहर में किसकी ख़बरगीरी करे
हर कोई गुम इक हुजूमे-बेख़बर के दरमियाँ.

जगमगाएगा मेरी पहचान बनकर मुद्दतों
एक लम्हा अनगिनत शामो-सहर के दरमियाँ.

एक साअत थी कि सदियों तक सफ़र करती रही
कुछ ज़माने थे कि गुज़रे लम्हे भर के दरमियाँ.

वार वो करते रहेंगे, ज़ख़्म हम खाते रहें
है यही रिश्ता पुराना संगो-सर के दरमियाँ.

किसकी आहट पर अंधेरों के क़दम बढ़ते गए
रहनुमा था कौन इस अंधे सफ़र के दरमियाँ.

बस्तियाँ मखमूर यूँ उजड़ी कि सहरा हो गईं
फ़ासले बढ़ने लगे जब घर से घर के दरमियाँ
.

खुबसूरत कोई लम्हा नही मिलने वाला

खुबसूरत कोई लम्हा नही मिलने वाला,
एक हँसता हुआ चेहरा नही मिलने वाला।
 
तेरे हसीन चेहरे को नींद में भी नहीं भूलता,
यूं ही रेतो पर चलने से नही मिलने वाला.
 
तब मेरे दर्द को महसूस करेगें लेकिन,
मेरी खातिर मसीहा तो नही मिलने वाला।
 
वे वजह अपनी निगाहों को परेशा मत करो,
वक्त के भीड में अपना नही मिलने वाला।
 
जाने क्या रंग बदल ले वो सितमगर अपना,
अब किसी से कहीं तन्हा नही मिलने वाला।
 
तुमने चिरागों को बुझाया क्योंकर,
इन अँधेरे में तो साया नही मिलने वाला।

चोटों पे चोट देते ही जाने का शुक्रिया

चोटों पे चोट देते ही जाने का शुक्रिया
पत्थर को बुत की शक्ल में लाने का शुक्रिया 
        
जागा रहा तो मैंने नए काम कर लिए
ऐ नींद आज तेरे न आने का शुक्रिया


सूखा पुराना जख्म नए को जगह मिली
स्वागत नए का और पुराने का शुक्रिया 
        
आती न तुम तो क्यों मैं बनाता ये सीढ़ियाँ
दीवारों, मेरी राह में आने का शुक्रिया


आँसू-सा माँ की गोद में आकर सिमट गया
नजरों से अपनी मुझको गिराने का शुक्रिया 
        
अब यह हुआ कि दुनिया ही लगती है मुझको घर
यूँ मेरे घर में आग लगाने का शुक्रिया
                                           

गम मिलते हैं तो और निखरती है शायरी
यह बात है तो सारे जमाने का शुक्रिया

दिल का दर्द ज़बाँ पे लाना मुश्किल है


दिल का दर्द ज़बाँ पे लाना मुश्किल है
अपनों पे इल्ज़ाम लगाना मुश्किल है

बार-बार जो ठोकर खाकर हँसता है
उस पागल को अब समझाना मुश्किल है

दुनिया से तो झूठ बोल कर बच जाएँ,
लेकिन ख़ुद से ख़ुद को बचाना मुश्किल है।

पत्थर चाहे ताज़महल की सूरत हो,
पत्थर से तो सर टकराना मुश्किल है।

जिन अपनों का दुश्मन से समझौता है,
उन अपनों से घर को बचाना मुश्किल है।

जिसने अपनी रूह का सौदा कर डाला,
सिर उसका  उठाना मुश्किल है।

आ समन्दर के किनारे पथिक प्यासा रह गया

आ समन्दर के किनारे पथिक प्यासा रह गया,
था गरल से जल भरा होकर रुआंसा रह गया।

था सफर बाकि बहुत मजिल अभी भी दूर थी,
हो गया बढना कठिन घिर कर कुहासा रह गया।

लग रहे नारे हजारो छप रही रोज लाखो खबर,
गौर से जब देखा तो बन तमाशा रह गया।

एक बुत गढ ने लगी अनजान में ही मगर,
हादसा ऐसा हुआ की वह बिन तराशा रह गया।

छोड़ कर आशा किसी का चल पड़ा बेचारा
आज वादा  लोगो का बस दिलासा रह गया।

एक ही श्रोता है

एक ही श्रोता है
वह भी सोता है।
किसने मारा है
तू क्यों रोता है।
कल बैठक है
देखें क्या होता है।
मतदान होना है
सबका न्योता है।
सुपारी कट जायेगी
हाथ में सरोता है।
वो प्रेस करता है
कपडे नहीं धोता है।
स्कूल और डाकखाना
साथ बंद होता है।
जो जुटाता है-
वही खोता है।

पुरानी बात बताते होंगे

पुरानी बात बताते होंगे
तो किस तरह लजाते होंगे।
मैं बहुत छोटा था, वो बड़े
गोद में खिलाते होंगे।
कितने मांसल हैं ये पेड़
व्यायाम को जाते होंगे।
रात की पाली खत्‍म हुई
श्रमिक नीचे आते होंगे।
बहुत बदबू है, सीलन है
महीनों में नहाते होंगे।
वजनदार होती है मिट्टी
कैसे डम्पर में चढ़ाते होंगे।
रात भी बजता है सायरन
कौन लोग बजाते होंगे।
अभी चला गया हुड़गा
अप्पाजी बुलाते होंगे।
पंपा – सरोवर है
लोग तालाब बताते होंगे।
ये बुढ़िया शबरी जैसी
राम भी आते होंगे।
यहीं कहीं किष्किंधा है
पर्यटक जाते होंगे।
मध्यान्तर में खड़ी है बच्ची
पापा खाना लाते होंगे।
( कन्‍न्‍ड में हुडगा – लडका, अप्‍पाजी- पिताजी)

फिर मशीन घरघराई है

फिर मशीन घरघराई है
पहाड़ की शामत आई है।
टुकडे हो गया कृपण पर्वत
लोहे की खेप उगलवाई है।
मिट्टी को सोने में बदल देंगे
सरकार से बात चलाई है।
लक्ष्य हो गया निर्धारित
खबर भी छपवाई है।
एक नाम मंगवाया था
पूरी सूची चली आई है।
कनिष्ठ बहुत खुश हैं
वरिष्ठों की विदाई है।
इडली खा ली वहीं पर
चटनी थैली में रखवाई है।
यहां लाल धूल बहुत है
कपडों से लिपट आई है।
अंगूर बिक गये अम्मा
कब से दुकान लगाई है।
नारियल ठीक से काटो
बड़ी नाजुक कलाई है।
खा लो, भेलपुरी खा लो
सौम्या ने बनाई है।
चांदी के सिक्के बटेंगे
परियोजना से कमाई है।

नया जाल बिछाना होगा

नया जाल बिछाना होगा
आदमी को सुलाना होगा।
निरीक्षक आ रहे हैं, कि-
ये सामान हटाना होगा।
स्वागत के बोल गूँजेंगे
बाजा भी बजाना होगा।
साहब ने बजा दी घंटी
प्रहरी को बुलाना होगा।
चलो कवितायें बंद करें।
आज तो नहाना होगा।

फिर कोई सरसराहट दौड़ानी होगी।

फिर कोई सरसराहट दौड़ानी होगी।
बात बहुत जम रही है, हिलानी होगी।
कन्नड़ में ‘कुत्ते’ को ‘नाई’ कहते हैं
ये बात नाई से छुपानी होगी।
स्कूल के पिछवाड़े मिलते हैं दो दिल
ये बात प्राचार्य को बतानी होगी।
उस तरफ के लोग नहीं दिखते हैं
ये ऊंची दीवार गिरानी होगी।

ये लड़की बिल्कुल सीधी चलती है

ये बैठक भी निकल जायेगी
एक घंटे की आफत है, टल जायेगी।
‘परिपत्र बहुत डराते हैं हमें’
जरा-सी बात मुंह से निकल जायेगी।
ये लड़की बिल्कुल सीधी चलती है
कभी फिसली तो संभल जायेगी।
हर तरफ पानी भर गया, फाइल-
भीगी तो अच्छा है, गल जायेगी।

किससे जाकर बोले मेरी गजल

जैसा मौका देखे वैसा हो ले मेरी गजल
वो बातें जो मैं नहीं बोलूं बोले मेरी गजल

चांद-सितारे अर्श1 पे जाके जब चाहें ले आएं
ऐसे अदीबोशायर2 से क्यूं बोले मेरी गजल

आज खुशी का मोती शायद इसको भी मिल जाए
गम की रेत को साहिल-साहिल रौले मेरी गजल

शोर-शराबे से घबराकर जब मैं राहत चाहूं
मेरे कानों में रस आकर घोले मेरी गजल

दिल से इसको चाहने वाला जब भी कभी मिल जाए
मन ही मन में झूमे गाए, डोले मेरी गजल

जिसको देखो इससे आकर अपना दुख कह जाए
अपने दुख को किससे जाकर बोले मेरी गजल

इतनी हिम्मत इतनी ताकत दी है खुदा ने
 दुनिया भर के भेद सभी पर खोले मेरी गजल

1. आकाश 2. लेखक-कवि

अँधेरे चंद लोगों का अगर मक़सद नहीं होते

अँधेरे चंद लोगों का अगर मक़सद नहीं होते
यहाँ के लोग अपने आप में सरहद नहीं होते
न भूलो, तुमने ये ऊँचाईयाँ भी हमसे छीनी हैं
हमारा क़द नहीं लेते तो आदमक़द नहीं होते
फ़रेबों की कहानी है तुम्हारे मापदण्डों में
वगरना हर जगह बौने कभी अंगद नहीं होते
तुम्हारी यह इमारत रोक पाएगी हमें कब तक
वहाँ भी तो बसेरे हैं जहाँ गुम्बद नहीं होते
चले हैं घर से तो फिर धूप से भी जूझना होगा
सफ़र में हर जगह सुन्दर— घने बरगद नही होते ।

हक़ीक़त ज़िन्दगी की ठीक से जब जान जाओगे

हक़ीक़त ज़िन्दगी की ठीक से जब जान जाओगे
मुसीबत के समय भी तुम हँसोगे-मुस्कराओगे
सुना है चाँद-तारे घर में भरना चाहते हो तुम
खुशी कुछ और ही शय है उसे इनमें न पाओगे
निराशा जब भी घेरे, उसमें मत डूबो निकल आओ
वहीँ उम्मीद की कोई किरन भी पा ही जाओगे
अँधेरों की हमें आदत है हम जी लेंगे लेकिन तुम
उजालों को बहुत दिन क़ैद में अ भी न पाओगे
सड़क चिकनी है, अच्छे पार्क हैं, चौराहे सुन्दर हैं
मगर वो खेत, वो जंगल कहाँ हैं कुछ बताओगे ?

अपने हर दर्द को अशआर में ढाला मैंने

अपने हर दर्द को अशआर में ढाला मैंने
ऐसे रोते हुए लोगों को संभाला मैंने
शाम कुछ देर ही बस सुर्ख़ रही, हालांकि
खून अपना तो बहुत देर उबाला मैंने
बच्चे कहते हैं कि एहसान नहीं फ़र्ज़ था वो
अपनी ममता का दिया जब भी हवाला मैंने
कभी सरकार पे, किस्मत पे, कभी दुनिया पर
दोष हर बात का औरों पे ही डाला मैंने
लोग रोटी के दिलासों पे यहाँ बिकते हैं
जब कि ठुकरा दिया सोने का निवाला मैंने
आप को शब् के अँधेरे से मुहब्बत है, रहे
चुन लिया सुबह के सूरज का उजाला मैंने
आज के दौर में सच बोल रही हूँ
अक्ल पर अपनी लगा रक्खा है ताला मैंने

मैं लोगों से मुलाकातों के लम्हे याद रखता हूँ

मैं लोगों से मुलाकातों के लम्हे याद रखता हूँ;
मैं बातें भूल भी जाऊं तो लहजे याद रखता हूँ |
सर-ए-महफ़िल निगाहें मुझ पे जिन लोगों की पड़ती हैं;
निगाहों के हवाले से वो चेहरे याद रखता हूँ |
ज़रा सा हट के चलता हूँ ज़माने की रवायत से;
कि जिन पे बोझ मैं डालू वो कंधे याद रखता हूँ |
दोस्ती जिस से कि उसे निभाऊंगा जी जान से;
मैं दोस्ती के हवाले से रिश्ते याद रखता हूँ ||

तुम्हें याद करने को तरस सा गया हूं

तुम्हें याद करने को तरस सा गया हूं
इस दुनिया में मैं इतना उलझ सा गया हूं

मरने के बाद मुझको आग मत लगाना
कि जीवन की चिता में झुलस सा गया हूं

आईने में दिखता है टूटा सा अक्स अपना
जख्मों की चोट खाकर यूं चटक सा गया हूं

अब कैसे संभालू मैं अपने जिगर के टुकड़े
अपने ही दिल में देखो बिखर सा गया हूं

जिंदगी का बिखर जाना अब आम बात है

जिंदगी का बिखर जाना अब आम बात है
किसी मोड़ पर मर जाना अब आम बात है
खुशियों की खोज में लोग निकलते हैं शहर में
वहां से मातम लेकर आना अब आम बात है
तेरी दुनिया में ऐ खुदा अब छोटी सी बात पर
खत लिखके जहर खाना अब आम बात है
प्यार के परिंदे जो कहीं उड़ते हुए दिख जाएं
उनका कत्ल कर जाना अब आम बात है

जाने किन रास्तों पर मेरे सपने भटक गए

जाने किन रास्तों पर मेरे सपने भटक गए
सदियों की तलाश में लम्हें भटक गए

ऐ रकीब, मेरे दिलबर का ख्याल रखना
अपनी तन्हाई में हम अब खुद में भटक गए

मुसीबत में जब-जब मेरी जिंदगी पड़ी
जाने किधर मेरे यार और अपने भटक गए

एक मैं नहीं हूं, हर दिल है यहां बीमार
देखो तो कितने लोग तेरे गम में भटक गए

Tuesday 29 March 2016

मौत यूं भी तेरे हाथों लिखी है जालिम

जानेजां हूं मैं अब तेरा गुनहगार सही
ले तू खंजर और कर दे आर-पार सही

मौत यूं भी तेरे हाथों लिखी है जालिम
जो लिखी है उसे तू पढ़ ले एक बार सही

सामने तुम जो रहोगी तो मर न पाऊंगा
चाहे खंजर ये चुभाओगी कई बार सही

जानता हूं कि ये सजा भी न दे पाओगी
आ भी जाऊं तेरे दर पे मैं बार-बार सही

लोग कहते हैं कि ये इश्क की बीमारी है

मेरी तबियत में ये कैसी खुमारी है
लोग कहते हैं कि ये इश्क की बीमारी है
तू इतनी दूर है तो नींद कैसे आएगी
रातभर जागना आशिक की लाचारी है
एक अहसास है जो जीने नहीं देती है
जिन्दगी बन गई तलवार दुधारी है
देखते हैं हम जल जल के दरवाजों को
जिगर में उठती तेरे आने की चिंगारी है

फिर भी तुम पास हो, ये कैसी जुदाई है

मेरी बर्बादी किस हद पे उतर आई है
बेरहम याद है और रात ये हरजाई है
आग इक हमने इस सीने में सुलगाई है
दूसरी आग भी जमाने ने अब लगाई है
कई बरसों से हम तुमसे मिले ही नहीं
फिर भी तुम पास हो, ये कैसी जुदाई है
हमने उसको ही नजाकत से अपनाया है
वो कली जो किसी गुलशन में मुरझाई है

तेरा गम देख के रोता ये जमाना होगा

मेरे हंसने से तड़पता ये जमाना होगा
तेरा गम देख के रोता ये जमाना होगा
इस मुहब्बत में मंजिल जो पा न सके
उनका दुनिया में फिर कैसे ठिकाना होगा
ऐ बहारों मुझे तू फूल अभी मत देना
इतना तन्हा हूं कि कांटों से निभाना होगा
मेरे अपने आज घर पे आने वाले हैं
खुशी बिखरी है यहां, उनको दिखाना होगा

खुद को संवारकर कहां तुम चले गए

खुद को संवारकर कहां तुम चले गए
मेरी दुनिया उजाड़कर कहां तुम चले गए

गुलशन के सारे फूल तोड़ चुके फिर भी
तितलियों को मारकर कहां तुम चले गए

जमाने के जुल्मों का हमें गम नहीं मगर
धोखे से वार कर कहां तुम चले गए

बुरे वक्त में जो रोते तेरे साथ चले थे
वो सब बिसार कर कहां तुम चले गए

गम से घिरे इंसान को यूं छोड़ देता है जहान

वो जानेवाला चला गया, मुड़ के कभी देखा नहीं
एक भीड़ देखती रही, किसी ने उसे रोका नहीं

गम से घिरे इंसान को यूं छोड़ देता है जहान
तन्हा ही वो मरता रहा और तूने भी टोका नहीं

राज ए दिल छुपा के जो खामोशी से जीता रहा
कहने को तो मिला उसे हसीन सा मौका नहीं

सुकून से है सो रहा जो कब्र में पड़ा हुआ
जिस ख्वाब ने जगाया था, वो देगी अब धोखा नहीं

मुहब्बत की दुआ किसने नहीं मांगी

मुहब्बत की दुआ किसने नहीं मांगी
अपने लिए ही सजा किसने नहीं मांगी
भले ही वो दें कितने ही बार धोखे
बेवफा से भी वफा किसने नहीं मांगी
उनकी यादों का दर्द जब कमने लगा
दुख बढ़ने की दवा किसने नहीं मांगी
उदासी के आईने को सजाने के लिए
हुस्न से एक अदा किसने नहीं मांगी

जो भी दुनिया में मुहब्बत पे जाँनिसार करे

जो भी दुनिया में मुहब्बत पे जाँनिसार करे
ऐसे दीवाने से आखिर क्यूँ कोई प्यार करे

रेत प्यासा सा तड़पता है हर साहिल पे
कितनी सदियों से वो लहरों का इंतजार करे

बाँटते रहते हैं वफा वो कई किश्तों में
बेवफाई का यहाँ जो भी कारोबार करे

चाहता हूँ, तेरे दामन का किनारा तो मिले
दिल भी आख़िर ये फरियाद कितनी बार करे

कहां गुनगुनाए वो दिल का तराना

कहां गुनगुनाए वो दिल का तराना
जुबां काटने को खड़ा है जमाना

ताक में हैं बैठे मुहब्बत के दुश्मन
लगाए हुए आशिकों पर निशाना

न जाने कहां उसका कत्ल होगा
जान बचेगी तो जिएगा दीवाना

खुदा तूने हुस्न को जीना सिखाया
इश्क को दिखाया मौत का ठिकाना

हमें तो तन्हा ही जीते जाना है

हमें तो तन्हा ही जीते जाना है
तेरे साथ तो सारा जमाना है
मेरी कोई फिक्र क्यों करोगी तुम
जब ये कायनात तेरा दीवाना है
किसकी तलाश में भटके हो दिल
बेवफाओं का कहां ठिकाना है
तुझे याद करते दम टूट जाना है
हर आशिक का यही फसाना है

वो कब तक समझेगी, ये बड़ा सवाल है

मुहब्बत का हर अहसास बेमिसाल है
ये तो उस हसीन महबूब का कमाल है
हम तो उनसे बेइंतहा इश्क करते हैं
वो कब तक समझेगी, ये बड़ा सवाल है
वो हमें याद करे ना करे एक पल भी
मेरी आंखों में तो बस उनका खयाल है
उनसे बस हमें थोड़ा सा प्यार चाहिए
जिसके लिए मेरा दिल बहुत बेहाल है

मौत आयेगी यही उम्मीद लेकर जी रहा हूँ

मौत आयेगी यही उम्मीद लेकर जी रहा हूँ
ज़िंदगी के ज़हर को अमृत समझकर पी रहा हूँ
ज़िंदगी की मुश्किलों से हारना सीखा नहीं है
डूब जाने तक शिकस्ता नाव का माझी रहा हूँ
चाक होती जा रही है आपसी रिश्तों की चादर
मैं कभी रो कर कभी हँस कर उसे फिर सी रहा हूँ
वुसअते अख़लाक़ पर क़ायम रहा क़ायम रहूँगा
मैं कहाँ नज़रे हक़ारत से मिली मै पी रहा हूँ
तज़रुबा ये भी ज़रूरी था, गिरा हूँ फर्श पर जो
आज तक मैं अर्श का परवाज़कुन पंछी रहा हूँ
ऐ सितारों चाँद का यूँ ही हमेशा साथ देना
वक़्त था, मैं भी कभी हर शख़्स का संगी रहा हूँ
दौरे हाज़िर में भगत होना जरूरी हो गया है
एक अरसे तक अहम् को मार कर गांधी रहा हूँ

Monday 28 March 2016

रास्तों में मिलते ही कतराते हैं लोग

मुझे देखकर ही डर जाते हैं लोग
रास्तों में मिलते ही कतराते हैं लोग
मेरी यारी जब किसी से बढ़ती है
पीठ पीछे उसे खूब समझाते हैं लोग
अगर भूल से कोई तारीफ करे मेरी
उस बात को वहीं दफनाते हैं लोग
मेरा दुश्मन जो कहीं पे मिल जाए
उसे तहे दिल से गले लगाते हैं लोग
सच कह देता हूं किसी के मुंह पर
मेरी इसी फितरत से घबड़ाते हैं लोग

मैं महज इतना कहूँगा आज ऐसे टूटने में

मैं महज इतना कहूँगा आज ऐसे टूटने में ।।
साज़िशें थी आपकी भी आइने के टूटने में ।।
आज तुझको तोड़कर अपना खुदा ये मान लेंगे ।।
सोच कर अब देख ले तू शोहरत है टूटने में ।।
कोई साँचा ही नहीं मिलता हमारे नाप का भी ।।
किस तरह तनकीद होगी बोल मेरे टूटने में ।।
जो हुआ सो भूल जा अब जिंदगी को साथ लेकर ।।
वो इबारत लिख ,पढ़ें सब , बात तेरे टूटने में ।।
कर रहा है जो शिकायत अब सरे बाजार मेरी ।।
टूटता हूँ रोज़ मैं एक बार उससे टूटने में ।।

तेरी कसम तेरे वादों का चेहरा

तेरी कसम तेरे वादों का चेहरा ।।
बदल गया मेरे ख्वाबों का चेहरा ।।
दो साँसे मुझमे भी रखदे तू अपनी ।।
कर दे मुझको भी किमामों का चेहरा ।।
तू उठाता है बात जब भी कोई ।।
पिघलता है मेरी साँसों का चेहरा ।।
खुदा ने बक्शी है उसे भी क्या आँखें ।।
हर नज़र में है उन आँखों का चेहरा ।।
अजीब सा मदमस्त फिरा करता हूँ मैं ।।
जबसे दिल में है उन यादों का चेहरा ।।
इश्क़ करते रहे हैं सदियों से दोनों ।।
पत्थरों पर है आईनों का चेहरा ।।
कभी कभी सावन से तंगआकर मैंने ।।
तोड़ डाला है जज्बातों का चेहरा ।।

Sunday 27 March 2016

अदा ओ नाज़ उनका सोचते हैं


अदा ओ नाज़ उनका सोचते हैं ।।
खुदा या खैर हम क्या सोचते हैं ।।
किसी को तो यहाँ इतनी अकल हो ।।
नया सुनकर पुराना सोचते हैं ।।
हमीं को चुभाया है खार उसने ।।
बदन जिसको अपना सोचते हैं ।।
कहीं गुमसुम जुदाई में शख्स वो ।।
कहाँ होगा भटकता सोचते हैं ।।
पलट कर घर कभी मेरी किश्ती ।।
क्या लौटा सकूँगा सोचते हैं ।।
जमाने में जहाँ भी सच सुनाओ ।।
अजीबो गरीब दासता सोचते हैं ।।
गलतफहमी मिटा दो जो अभी भी ।।
महज मुझको किनारा सोचते है ।।
उतर कर तू बता यूँ सावन में भी ।।
क्यूँ मुझको दिवाना सोचते है ।।

अपना या बेगाना कह दे

अपना या बेगाना कह दे ।।
पर मुझको दीवाना कह दे ।।
मुझको रख ले या तू रह जा ।।
क्या ये आना जाना कह दे ।।
मैं ही हूँ आइना तेरा ।।
या मेरा पैमाना कह दे ।।
इश्क़ हूँ मैं तेरा ये किस्सा ।।
दुनिया से रोज़ाना कह दे ।।
याद का तेरी एक लम्हा हूँ ।।
गढ़ा मुझे खजाना कह दे ।।
तूने ही लिखा है मुझको ।।
क्यूँ अब मुझे मिटाना कह दे ।।
छुपा ले अपनी आँखों में ।।
ख्वाब वही पुराना कह दे ।।
धड़कनों में सजाकर मुझको ।।
अपना तू अफ़साना कह दे ।।

आप मेरे निशाँ ढूँढ़ते हो

आप मेरे निशाँ ढूँढ़ते हो
मैं यहाँ हूँ तुम कहाँ ढूँढ़ते हो ।।
दो लम्हा बात कर लें गनीमत ।।
आप अहले जुबाँ ढूँढ़ते हो ।।
कट रहा है सफर जिंदगी का ।।
ठोकरें खामखाँ ढूँढ़ते हो ।।
आप अपनी तक़दीर छुपा कर ।।
पाँव में आसमाँ ढूँढ़ते हो ।।
आदमी को खुदा मान लेते ।।
ये क्या अब धुआँ ढूँढ़ते हो ।।

मानता था कभी जो किनारा मुझे

मानता था कभी जो किनारा मुझे ।।
दर्द में भी उसी ने पुकारा मुझे ।।
काश मैं खुशबुओं से सजाता तुझे ।।
लोग कहते भले फिर अवारा मुझे ।।
छोड़कर वो गया था मुझे कल जहाँ ।।
मुद्दतों आज उसने निहारा मुझे ।।
काँच हूँ जानकर पहले तोडा गया ।।
बाद में किसलिए गया संवारा मुझे ।।
कशमकश घेर कर रोकती थी हमें ।।
डूबते ने बहुत था पुकारा मुझे ।।
डूबना ही कश्ती का मुकद्दर हुआ ।।
जब हुआ आँन्खो का इशारा मुझे ।।
एकदिन मैं चला गया था चाँद पर ।।
मुश्किलों से वहाँ से उतारा मुझे ।।

लड़खड़ाने लगे जब कदम आपका

लड़खड़ाने लगे जब कदम आपका ।।
थाम लेंगे सुनो हाथ हम आपका ।।
कोई भी तो नहीं है यहाँ देखिये ।।
एक मैं हूँ यहाँ एक गम आपका ।।
छू लिया गर कभी भूल से आपको ।।
बहकता ही रहेगा जिस्म आपका ।।
एक लम्हा मुताबिक नहीं जिंदगी ।।
और फिर टूटना यूँ सितम आपका ।।
जब कभी वो मिला सर झुकाकर मिला ।।
मार डाले न हमको रहम आपका ।।
अब लगा हो यहीँ फिर लगा तुम नहीं ।।
आपकी ही तरह है वहम आपका ।।
उम्रभर तक चला सिलसिला दर्द का ।।
बा अदब पेश आया जखम आपका ।।

आप मुझको दिल से सुनना मैं गजल बनता रहा हूँ ।।

तितलियों की प्यास खातिर फूल सा खिलता रहा हूँ ।।
आप मुझको दिल से सुनना मैं गजल बनता रहा हूँ ।।
घुटन अपनी ओढ़कर किसतरह अब मैं सो सकुँगा ।।
रात भर ये ख़ौफ़ आँखों में लिए बैठा रहा हूँ ।।
ढूंढ ही ले आया मुझे वो दर्द वाले जंगलो से ।।
मैं जहाँ तुमसे जुडी कुछ याद से लिपटा रहा हूँ ।।
जानता था सादगी से मार देगा वो मुझे भी ।।
रोज़ कातिल हुस्न से किसतरह मैं बचता रहा हूँ ।।
ये शिकायत है जमाने को मिरे अंदाज़ से भी ।।
किसलियेे मैं ये जमाने का जहर पीता रहा हूँ ।।

अजनबी तू क्यों दिल के करीब लगता है

जबसे देखा है तुमको, तू ही हबीब लगता है
अजनबी तू क्यों दिल के करीब लगता है
तेरे उदास चेहरे पे ये लबों की मुस्कुराहट
देखती हूं तो ये अहसास अजीब लगता है
मेरे पास आकर तुम दामन जो थाम लो
अब जिंदगी में यही अच्छा नसीब लगता है
तूने मेरी दुआ न सुनी तो मर जाऊंगी
तेरे बिन जीवन अब तो सलीब लगता है

साज़िशें थी आपकी भी आइने के टूटने में ।।

मैं महज इतना कहूँगा आज ऐसे टूटने में ।।
साज़िशें थी आपकी भी आइने के टूटने में ।।
आज तुझको तोड़कर अपना खुदा ये मान लेंगे ।।
सोच कर अब देख ले तू शोहरत है टूटने में ।।
कोई साँचा ही नहीं मिलता हमारे नाप का भी ।।
किस तरह तनकीद होगी बोल मेरे टूटने में ।।
जो हुआ सो भूल जा अब जिंदगी को साथ लेकर ।।
वो इबारत लिख ,पढ़ें सब , बात तेरे टूटने में ।।
कर रहा है जो शिकायत अब सरे बाजार मेरी ।।
टूटता हूँ रोज़ मैं एक बार उससे टूटने में ।।

तू भी दिल से जुदा न हो जाना

कभी हमसे खफा न हो जाना
जानेमन बेवफा न हो जाना
जो याद आए मगर मिल न सके
तू भी कोई खुदा न हो जाना
जिसे पीते ही दर्द बढ़ने लगे
जख्म की ऐसी दवा न हो जाना
तेरे सिवा क्या बचा है तन्हाई में
तू भी दिल से जुदा न हो जाना

हम रोये तो ये जमाना समझ में आया

कभी अपनों ने, कभी दूसरों ने रुलाया
हम रोये तो ये जमाना समझ में आया
अपने मतलब के लिए इस्तेमाल करते हैं
कई इंसानों में हमने इस हुनर को पाया
प्यार में डूबी हुई अच्छी अच्छी बातें करके
वो न जाने कितनों का कत्ल कर आया
मगर कुछ लोग यहां ऐसे भी मिल जाते हैं
जिनको दूसरों पर अपनी जान लुटाते पाया

और अपने साथ क्या लेकर जाना है

एक तू है और इश्क का फसाना है
मेरे जीने का बस यही तो बहाना है
इस दुनिया से तेरी यादों के सिवा
और अपने साथ क्या लेकर जाना है
देखो कब आता है वो हसीन लम्हा
मेरे सामने तुमको कभी तो आना है
तुमसे मिलकर क्या ये पूछ पाऊंगा
कि दिल को और कितना तड़पाना है

तुमको देखा तो नूर आंखों में चमक आया

तुमको देखा तो नूर आंखों में चमक आया
जैसे खुदा मेरी इन दो पलकों में सिमट आया
परेशान सी सूरत तुम्हारी देख रहा हूं मैं कबसे
किसकी तलाश में ये हसीन फूल है मुरझाया
दुनिया की हर गली में जज्बातों के मकबरे हैं
हर घर में आशिकी ने एक कब्र है बनवाया
इश्क की यह उदासी भी बहुत जानलेवा है
ये किसी ने तुमको अब तक नहीं समझाया

किसी एक को तो अपनी वफा की मिसाल दो

सारा गुनाह इश्क का, उसपे ही डाल दो
मुजरिम उसे बनाकर मुसीबत को टाल दो
ये चमन जहां खिला एक फूल मुस्कुराता
उसे तोड़कर रकीबों की तरफ उछाल दो
तेरे दर पे रो रहा है लो आके तेरा आशिक
और कुछ नहीं तो उसको अपना रुमाल दो
इस शहर में घूमते हैं सैकड़ों तेरे दीवाने
किसी एक को तो अपनी वफा की मिसाल दो

तेरे आने के भरम से सांस लेता हूं

ये न पूछो कि मैं कैसे जिए जाता हूं
तेरे आने के भरम से सांस लेता हूं
तेरी उम्मीद अब नशा बन गई साकी
इश्क के मैखाने में सुबहो शाम पीता हूं
देखकर मेरी तरफ जमाना अब हंसता है
और एक मैं तेरी तस्वीर देख रोता हूं
कहां फिसलके आ गिरी है जिंदगी मेरी
आके संभालो कि राहों में गिर पड़ता हूं

आशिक को इस तरह क्यों आजाद करती हो

टूटे रिश्ते को जोड़ने की फरियाद करती हो
क्यों अपना वक्त फिर से बर्बाद करती हो
इतनी दूर चला जाय कि वो वापस नहीं लौटे
आशिक को इस तरह क्यों आजाद करती हो
तेरी खामोशी ने जिसको खत्म कर दिया था
उस कहानी पर क्यों अब तुम बात करती हो
हम दोनों के रहगुजर अब अलग हो चुके हैं
मंजिल जो मिट गई उसे क्यों याद करती हो

इतने खतरे उठा दोनों करते हैं प्यार

जबसे तुम हमसे आकर मिलने लगी
दुश्मनी हर किसी से अब होने लगी
दोनों को देखकर लोग हैं जल रहे
बस्ती में हर तरफ आग लगने लगी
इतने खतरे उठा दोनों करते हैं प्यार
मौत से भी मुहब्बत सी होने लगी
दुनिया होती है क्यूं इश्क से यूं खफा
मैंने जब ये कहा तो तू हंसने लगी

बड़े नादान हैं वो लोग जो तुमसे प्यार करते हैं

तुम्हारी आहट से अक्सर हमारी नींद उड़ती है
तेरी ये याद रातों में बहुत सताया करती है
मेरा दिल टूट न जाए जरा खयाल ये रखना
बड़ी मुद्दत से हर धड़कन तेरा ही नाम लेती है
मसलकर पंखुरी को तुम जो अक्सर फेंक देती हो
वो पिसकर भी तेरे हाथों में खुशबू ही भरती है
बड़े नादान हैं वो लोग जो तुमसे प्यार करते हैं
किसी को ये नहीं मालूम कि तू किसपे मरती है