Monday 28 March 2016

मैं महज इतना कहूँगा आज ऐसे टूटने में

मैं महज इतना कहूँगा आज ऐसे टूटने में ।।
साज़िशें थी आपकी भी आइने के टूटने में ।।
आज तुझको तोड़कर अपना खुदा ये मान लेंगे ।।
सोच कर अब देख ले तू शोहरत है टूटने में ।।
कोई साँचा ही नहीं मिलता हमारे नाप का भी ।।
किस तरह तनकीद होगी बोल मेरे टूटने में ।।
जो हुआ सो भूल जा अब जिंदगी को साथ लेकर ।।
वो इबारत लिख ,पढ़ें सब , बात तेरे टूटने में ।।
कर रहा है जो शिकायत अब सरे बाजार मेरी ।।
टूटता हूँ रोज़ मैं एक बार उससे टूटने में ।।

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