Tuesday 29 March 2016

मौत आयेगी यही उम्मीद लेकर जी रहा हूँ

मौत आयेगी यही उम्मीद लेकर जी रहा हूँ
ज़िंदगी के ज़हर को अमृत समझकर पी रहा हूँ
ज़िंदगी की मुश्किलों से हारना सीखा नहीं है
डूब जाने तक शिकस्ता नाव का माझी रहा हूँ
चाक होती जा रही है आपसी रिश्तों की चादर
मैं कभी रो कर कभी हँस कर उसे फिर सी रहा हूँ
वुसअते अख़लाक़ पर क़ायम रहा क़ायम रहूँगा
मैं कहाँ नज़रे हक़ारत से मिली मै पी रहा हूँ
तज़रुबा ये भी ज़रूरी था, गिरा हूँ फर्श पर जो
आज तक मैं अर्श का परवाज़कुन पंछी रहा हूँ
ऐ सितारों चाँद का यूँ ही हमेशा साथ देना
वक़्त था, मैं भी कभी हर शख़्स का संगी रहा हूँ
दौरे हाज़िर में भगत होना जरूरी हो गया है
एक अरसे तक अहम् को मार कर गांधी रहा हूँ

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