Sunday 27 March 2016

अदा ओ नाज़ उनका सोचते हैं


अदा ओ नाज़ उनका सोचते हैं ।।
खुदा या खैर हम क्या सोचते हैं ।।
किसी को तो यहाँ इतनी अकल हो ।।
नया सुनकर पुराना सोचते हैं ।।
हमीं को चुभाया है खार उसने ।।
बदन जिसको अपना सोचते हैं ।।
कहीं गुमसुम जुदाई में शख्स वो ।।
कहाँ होगा भटकता सोचते हैं ।।
पलट कर घर कभी मेरी किश्ती ।।
क्या लौटा सकूँगा सोचते हैं ।।
जमाने में जहाँ भी सच सुनाओ ।।
अजीबो गरीब दासता सोचते हैं ।।
गलतफहमी मिटा दो जो अभी भी ।।
महज मुझको किनारा सोचते है ।।
उतर कर तू बता यूँ सावन में भी ।।
क्यूँ मुझको दिवाना सोचते है ।।

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