इंसानी चेहरे के पीछे खूनी मंजर देखे है,
और प्यार के उम्मीदों पर पड़ते पत्थर देखे है।
लहरों के पीछे हो जाना मुशिकल शायद नहीं रहा,
अपनी बस्ती में लोगो के खौफ़जदा घर देखे है।
जिसको हमने साथ किया था तन्हाई में चलने को,
न वक्त में उनके हाथ में हमने खंजर देखे है।
मंजिलो से कदमो को रिश्ता कितना मुश्किल है,
बरसातों में कच्चे घर के चुते छप्पर देखे है।
अब तो चलना भी डर लगता है किसको हाथ साथ करे,
राह बदल कर चलने वाले कितने रहवर देखे है।
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