तितलियों की प्यास खातिर फूल सा खिलता रहा हूँ ।।
आप मुझको दिल से सुनना मैं गजल बनता रहा हूँ ।।
घुटन अपनी ओढ़कर किसतरह अब मैं सो सकुँगा ।।
रात भर ये ख़ौफ़ आँखों में लिए बैठा रहा हूँ ।।
आप मुझको दिल से सुनना मैं गजल बनता रहा हूँ ।।
घुटन अपनी ओढ़कर किसतरह अब मैं सो सकुँगा ।।
रात भर ये ख़ौफ़ आँखों में लिए बैठा रहा हूँ ।।
ढूंढ ही ले आया मुझे वो दर्द वाले जंगलो से ।।
मैं जहाँ तुमसे जुडी कुछ याद से लिपटा रहा हूँ ।।
जानता था सादगी से मार देगा वो मुझे भी ।।
रोज़ कातिल हुस्न से किसतरह मैं बचता रहा हूँ ।।
ये शिकायत है जमाने को मिरे अंदाज़ से भी ।।
किसलियेे मैं ये जमाने का जहर पीता रहा हूँ ।।
मैं जहाँ तुमसे जुडी कुछ याद से लिपटा रहा हूँ ।।
जानता था सादगी से मार देगा वो मुझे भी ।।
रोज़ कातिल हुस्न से किसतरह मैं बचता रहा हूँ ।।
ये शिकायत है जमाने को मिरे अंदाज़ से भी ।।
किसलियेे मैं ये जमाने का जहर पीता रहा हूँ ।।
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