अब तो बस
अख़बार बचे हैं
कुछ
टहनी कुछ ख़ार
बचे हैं
भीड़ भरे मेरे
भारत में लो
मानव बस
दो चार बचे
हैं
कहने को
क्या है जब सब
बेरोज़गार
और बेकार बचे
हैं
च़मन उजड़
चुका
है बस
नेता के ग़ले के
हार बचे हैं
चूस चुके इस देश
को
मुँह
में फ़िर
भी लार बचे
हैं
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