मैं
अपनी आस्थाएँ
लिए रह गया
जंग ज़ारी
थी मैं बैठा
रह गया
आवरण
तोड़ना तो था
पर क्यों
लोग चल
दिए मैं पीछे
रह गया
करना था
बहुत कुछ नया नया
भीड़
में मैं भी
सोचता रह गया
ख़ुदा
ने तो दी थी
बुद्धि बख़ूब
क्यों
औरों की टीपता
रह गया
इस तक़नीकी
ज़माने में
पुराणपंथी बना देखो रह गया
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