राजनीति
के स्तंभ बन
गए हैं ग़रीब
अब तो
मुद्दे स्थाई
बन गए हैं
ग़रीब
सियासी
खेल का कोई
राज बताए
कि
धनवान क्यों
बन गए हैं
ग़रीब
चान्दी
का चम्मच ले
पैदा हुए हैं
जो
वो और भी ज्य़ादा
बन गए हैं
ग़रीब
सोने की
चिड़िया का
हाल है नया
क़ौम के
सारे लोग बन
गए हैं ग़रीब
अपनी
अमीरी दुनिया सबने बना
ली
औरों की
सोचने में बन
गए हैं ग़रीब
कुछ कर, कि फोड़
अकेला भाड़
वरना तो
यहाँ सब बन गए
हैं ग़रीब
No comments:
Post a Comment