Wednesday 30 March 2016

इन्सान को इन्सान समझिये

ताकत पे सियासत की ना गुमान कीजिये, 
इन्सान हैं इन्सान को इन्सान समझिये। 

यूँ पेश आते हो मनो नफरत हो प्यार में, 
मीठे बोल न निकले क्यूँ जुबां की कटार से। 

खुद जख्मी हो गये हो अपने ही कटार से, 
सच न छुपा पाओगे अपने इंकार से। 

आँखें  भुला के दिल के आईने में झाकिये, 
इन्सान हो इन्सान को इन्सान ही समझिये। 

कैसी ख़ुशी है आप को ऐसे आतंक से ?
कैसा सकुन बहते हुए खून के रंग से ?

तलवारों खंजरों में क्यूँ किया सिंगार  है, 
आप भी दुश्मन हैं आपके इस जंग में। 

खुद से न सही अपने आप से डरिये, 
इन्सान हो इन्सान को इन्सान समझिये। 

खुद का शुक्र है आप भी इन्सान हैं, 
इंसानियत से न जाने क्यूँ अनजान हैं। 

शुक्र कीजिये की खुदा मेहरबान है, 
वरना आप कौन ? क्या पहचान है। 

सच यही है, अब तो ये जान लीजिये, 
इन्सान हो इन्सान को इन्सान समझिये।

No comments:

Post a Comment