फिर किस
लिए ये क़ानून
हैं
शायद
मेरे लिए ही
क़ानून हैं
बने हैं सरे राह
मंदिर मस्जिद
जहां
चलने के भी
क़ानून हैं
खुदा के बन्दों ने छीनी वाणी
बोलने न
बोलने के
क़ानून हैं
मंज़िल
की आस फ़ज़ूल
है यहाँ
हर कदम
क़ानून ही
क़ानून हैं
कैद में
है, दोषी
स्वतंत्र हैं
कैसा ये
देश है कैसे
क़ानून हैं
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