Wednesday 30 March 2016

जीने की अरमान नही है

सांसे तो है मगर अब जीने की अरमान नही है,
देखा है जिन्दगी को इस कदर खुद की पहचान नही है।
                 दर्द है बिखरा है जहाँ में यहाँ से वहाँ  तलक,
                 बाँट ले गम थोडा सा ही ऐसा कोई इन्सान नहीं है  ।
खेल कर जी भर आग से कहने लगे है अब तो,
जलते तन मन के लिए बर्फ का सामान नही है।
                 गुल-ए-चमन में जग कर रात रात भर,
                 मायूस हो कहते है वो काँटों का बरदान नही है।
बुझेगी नही प्यास सुरा से,सुन्दरी से औ शबाब से,
जवानी तो दो घडी है हरदम तो इसका एलान नही है ।
                  लुट कर खुद गैर की आबरू दिन दहाड़े ही,
                  कहते है वो आदमी की शक्ल में भगवान नही है।
गवां दी उम्र सारी  मनमानी हरकतों के तहत।
थक गये तो कहते है सर पर आसमान नहीं है।
                  सभल जा अब भी थोडा वक्त है,
                  जिन्दगी की राहों  को समझना आसन नही है।

No comments:

Post a Comment