Wednesday 30 March 2016

सपने प्यार के



आँखों में शोले लिए मैं कहाँ से कहाँ आ निकला,
जो घर जला कर आया वह तो  अपना निकला।
             लोगो ने पागल करार दिया फेके पत्थर मुझपर,
             जब मैं लोगो के घर के बराबर से .......  निकला ,
जहाँ  था फूलों उपवन परिंदे  करते थे गुलजार,
वहीं मौत की वीरानियाँ  लिए श्मशान निकला।
             जिन आँखों में दिखता था कभी सपने प्यार के,
             उन्ही पलको में आँसू ....  का समन्दर निकला।
जिन हाथो के पकड़ सोचा कर लेगे दुनियाँ फतह,
पीछे मुडकर देखा उन्ही  हाथो में खंजर निकला।
             साथ क्यों छोड़ जाते है कुछ कदम चलने के बाद,
             संजोये ... ख्वाब टूट गये जब सामने से निकला।
तुम अगर कभी समझ पाओ तो मुझे भी समझाना,
देवो का नकाब लगाये कातिलो का लश्कर निकला।

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