सब सुनाने
में लगे हैं
अपनी अपनी
ग़ज़ल
क्यों
कोई सुनता
नहीं
मेरी अपनी
ग़ज़ल
रंग रंग़ीली
दुनिया में
कोई
ये बताए
हमें
रंग
सियाह में
क्यों पुती
है अपनी ग़ज़ल
छिल जाएंगी उँगलियाँ
और फूट जाएंगे
माथे
इस
बेदर्द
दुनिया में मत
कह अपनी ग़ज़ल
मज़ाहिया नज़्मों
का ये दौर नया
है यारो
कोई
पूछता नहीं आँसुओं
भरी अपनी
ग़ज़ल
जो
मालूम है लोग ठठ्ठा
करेंगे ही हर
हाल
मूर्ख फ़िर
भी कहता है अपनी
ग़ज़ल
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