Wednesday 27 April 2016

औरतों के जिस्म पर

औरतों के जिस्म पर सब मर्द बने हैं
मर्दों की जहाँ बात हो, नामर्द खड़े हैं
शेरों से खेलने को पैदा हुए थे जो
नाज़ुक़ किसी बदन से वो खेल रहे हैं
हर वक़्त भूखी आँखें कुछ खोज रही हैं
भूखे बेजान जिस्म को भी नोंच रहे हैं
गुल ही पे नहीं आफ़त गुलशन पे क़यामत
झड़ते हुए फूलों पे, वे कलियों पे पड़े हैं
मरने की नहीं हिम्मत ना जीने का सलीक़ा
हम सूरत – ए - इंसान बेशर्म बड़े है।

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