Wednesday 27 April 2016

आज फिर बिखर जाएगा कजरा बहकर

एक तक़लीफ़ उमड़ती है मेरे सीने में
अरे बेदर्द आता है क्यूँ आँसू बनकर
आज सँवरी हूं आईने में बस तेरे लिए
आज फिर बिखर जाएगा कजरा बहकर
अपने आँचल की घूँघट ओढ़कर
तेरी दुल्हन रोती है राह देखकर
तू न आया है, न तू आएगा
आज फिर बिखर जाएगा कजरा बहकर
कहां रहता है इस बेरहम ज़माने में
मन में आता है, सामने क्यूँ नहीं आता
ओ सलोने तेरी याद में रो-रोकर
आज बिखर जाएगा कजरा बहकर
सोलहवाँ साल बीता है जाने कबके
कई रूत आके गुजरी है दुख देकर
एक नई रात दुख की घिर आई है
आज फिर बिखर जाएगा कजरा बहकर

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