शेर-ओ-ग़ज़ल
Thursday, 28 April 2016
प्यार के सिलसिले
प्यार के सिलसिले को जिंदा कर,
रोज़ मिल मुझसे न बिछड़ा कर,
उंगलियों से हवा के कागज़ पर,
एक ख़त मुझको भी रोज़ लिखा कर"
बिखरे ख्वाबों में कुछ बचा ही नहीं,
अब न इन तितलियों का पीछा कर"
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