वह नहीं कहता तू उसकी वन्दना कर
चाहता वह उसकी तू आलोचना कर
वक्त पर तुझको नहीं दी छांव उसने
सूख जाया पेड़, ऐसी कामना कर
चाहता वह उसकी तू आलोचना कर
वक्त पर तुझको नहीं दी छांव उसने
सूख जाया पेड़, ऐसी कामना कर
जो कभी तुझसे यहाँ मिलता नहीं था
आज तू भी उससे मिलने से मना कर
रह रहे कागज़ के बाशिन्दे शहर में
जाने कैसे आग से रिश्ते बना कर
जाने कितनी तू उड़ाने भर चुका है
अब दरख्तों का ओ सूरज सामना कर
रात आंखें मूंद कर ओझल हुई है
श्वान अब तो बन्द अपना भोंकना कर
आज तू भी उससे मिलने से मना कर
रह रहे कागज़ के बाशिन्दे शहर में
जाने कैसे आग से रिश्ते बना कर
जाने कितनी तू उड़ाने भर चुका है
अब दरख्तों का ओ सूरज सामना कर
रात आंखें मूंद कर ओझल हुई है
श्वान अब तो बन्द अपना भोंकना कर
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