Tuesday, 19 April 2016

होठों से तू हंसती है, आंखो से तू रोती है

सूरत पे हर इक पल में दो प्यास उभरती है
होठों से तू हंसती है, आंखों से तू रोती है

शम्मे न जला तू अभी, रहने दे अंधेरे को
तू रात के पहलू में एक चांद सी लगती है

हाथों के इशारे से मुझे रोक ना रोने से
आंसू नहीं रूकते हैं जब दूर तू जाती है

मिलती है जो तू ऐसे उल्फत की अदा लेकर
लगता है मेरे दिल की हर बात तू पढ़ती है

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