आज हरे कल पीले सूखे परसों।
जीवन रुपी पत्ते यूँ दीखे बरसों।।
रहीं अधूरी अगणित अभिलाषा।,
रहा भ्रमित मन माया का प्यासा,।
नहीं जान पाया ये संतोषी भाषा,।
पढ़े शाश्त्र ना जाने सीखे बरसों।।
आज हरे कल पीले सूखे परसों।।
जीवन--------
भ्रम से पीड़ित माया के जंगल में।
रहे खोजते सुख को जल थल में।
छुपा रहा आनंद हृदय आँचल में।
रहे बहिर अनभिज्ञ अंतः घरसों ।।
आज हरे कल पीले सूखे परसों।।
जीवन रूपी पत्ते यूं दीखे बरसों।
जीवन रुपी पत्ते यूँ दीखे बरसों।।
रहीं अधूरी अगणित अभिलाषा।,
रहा भ्रमित मन माया का प्यासा,।
नहीं जान पाया ये संतोषी भाषा,।
पढ़े शाश्त्र ना जाने सीखे बरसों।।
आज हरे कल पीले सूखे परसों।।
जीवन--------
भ्रम से पीड़ित माया के जंगल में।
रहे खोजते सुख को जल थल में।
छुपा रहा आनंद हृदय आँचल में।
रहे बहिर अनभिज्ञ अंतः घरसों ।।
आज हरे कल पीले सूखे परसों।।
जीवन रूपी पत्ते यूं दीखे बरसों।
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