Wednesday, 13 April 2016

मुन्तजिर

मुन्तजिर हूँ मैं ख़त का, लिखा किजिए
ये अगर रस्म है तो अदा कीजिए
इश्क की मेरे उनको खबर हो कभी
ये करिश्मा ऐ मेरे खुदा कीजिए
हम पे लो उल्फ़तों का सुरूर आ गया
आप भी थोडा कुछ तो नशा कीजिये
रात मिलने वो आये हैं मुद्दत के बाद
अब नहीं हो सहर ये दुआ कीजिए
टूट जाये न दिल इश्क़ में आपका
दिलफरेबों से अक्सर बचा कीजिये
तेरे वादों से उकता गए हैं सनम
चाल कोई नई अब चला कीजिए
खिल उठेगा ये मुरझाया दिल आप भी
अपनी सांसो को बादे सबा कीजिये

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