Wednesday 13 April 2016

नक्श-ए-पा




            "पत्थर सुलग रहे थे कोई नक्श-ए-पा न था,

          हम उस तरफ़ चले थे जिधर रास्ता न था"


         "परछाईयों के शहर की तनहाईयां न पूछ 


        अपना शरीक-ए-ग़म कोई अपने सिवा न था"


          "यूं देखती हैं गुमशुदा लम्हों के मोड से,

        इस जिंदगी से जैसे कोई वास्ता न था"


      "चेहरों पे जम गई थी ख़यालों की उलझनें,

      लफ़्जों की जुस्तजु में कोई बोलता न था"

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