Friday, 1 April 2016

मेरे जज़्बात के हर कतरे में तुम बहने की अदाएँ सीख गए

हम रोने का हुनर सीख गए
तुम आकर आँसू में भींज गए
मेरे जज़्बात के हर कतरे में
तुम बहने की अदाएँ सीख गए

फिजा की बिखरी यादों में
फूलों में सँवरे काँटों में
कायनात के दर्द की सोहबत में
हम जीना-मरना सीख गए

शाम की धुंधली राहों पर
गम की अँधेरी रातों पर
ख्वाब के टूटे शीशों पर
मुस्कुरा के चलना सीख गए

जख़्म के पहलू में सोकर
नग़मों को कागज पे लिखकर
अपनों के प्यार से दूर होकर
हम जीवन जीना सीख गए

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