Saturday, 2 April 2016

शम्मा



"इक  न इक शम्मा अँधेरे में जलाए रखिये 
   सुबह होने को है माहौल बनाए  रखिये "

 "कौन जाने वो किस राह गुज़र से गुज़रें 
  हर गुज़र गाह को फूलों से सजाए रखिये "

"दामने यार की ज़ीनत न बने हर आँसू 
  अपनी पलकों के लिए कुछ तो बचाए रखिये"

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