Tuesday, 5 April 2016

मैं कायनात में....

मैं कायनात में.., सय्यारों में भटकता था..,
.. धुएँ में.., धूल में.., उलझी हुई किरण की तरह ~
मैं इस ज़मीं पे भटकता रहा हूँ सदियों तक..,
.. गिरा है वक्त से कट कर जो लम्हा उसकी तरह ~
शहर मिला तो गली के लिए भटकता रहा..,
.. गली में घर का निशाँ तलाश करता रहा बरसों ~
तुम्हारी रूह में.. अब जिस्म में भटकता हूँ..,
लबों से चूम लो.... आंखो से थाम लो मुझको ~~
तुम्हारी मोहब्बत से जन्मूँ तो शायद मुझे पनाह मिले .....

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