Saturday, 2 April 2016

इतना तो जिंदगी में किसी की ख़लल पड़े......



इतना तो जिंदगी में किसी की ख़लल पड़े
हंसने से हो सुकूं ना रोने से कल पड़े

जिस तरह हंस रहा हूँ मैं पी-पी के अश्क-ऐ-ग़म
यूं दूसरा हंसे तो कलेजा निकल पड़े

एक तुम के तुम को फ़िक्र-ऐ-नशेब-ओ-फ़राज़ है
एक हम के चल पड़े तो बहरहाल चल पड़े

[ नशेब=उतार/descent; फ़राज़=चढ़ाव/ascent ]

मुद्दत के बाद उस ने जो की लुत्फ़ की निगाह
जी खुश तो हो गया मगर आंसू निकल पड़े

साकी सभी को है गम-ऐ-तशनालबी मगर
मय है उसी के नाम पे जिस के उबल पड़े

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