शेर-ओ-ग़ज़ल
Friday, 1 April 2016
राक्षस था, न खुदा था पहले
राक्षस था, न खुदा था पहले
आदमी कितना बडा था पहले
आस्मां, खेत, समुंदर सब लाल
खून कागज पे उगा था पहले
मैं वो मक्तूल, जो कातिल ना बना
हाथ मेरा भी उठा था पहले
अब किसी से भी शिकायत न रही
जाने किस किस से गिला था पहले
शहर तो बाद में वीरान हुआ
मेरा घर खाक हुआ था पहले
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