शेर-ओ-ग़ज़ल
Friday, 1 April 2016
पत्थर के ख़ुदा वहां भी पाये
पत्थर के ख़ुदा वहां भी पाये
हम चांद से आज लौट आये
दिवारें तो हर तरफ खडी हैं
क्या हो गया मेहरबां साये
जंगल की हवायें आ रही हैं
कागज़ का ये शहर उड ना जाये
सहरा सहरा लहू के खेमे
फिर प्यासे लब-ए-फ़ुरात आये.
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