Friday, 1 April 2016

पत्थर के ख़ुदा वहां भी पाये


पत्थर के ख़ुदा वहां भी पाये
हम चांद से आज लौट आये

दिवारें तो हर तरफ खडी हैं
क्या हो गया मेहरबां साये

जंगल की हवायें आ रही हैं
कागज़ का ये शहर उड ना जाये

सहरा सहरा लहू के खेमे
फिर प्यासे लब-ए-फ़ुरात आये.

No comments:

Post a Comment