कोई पत्ता हिले हवा तो चले कौन अपना है ये पता तो चले तू सितम से न हाथ अभी और कुछ दिन ये सिलसिला तो चले मंजिले खुद करीब आयेंगी ये अजिजानो का काफ़िला तो चले शहर हो गाव हो या हो घर अपना आबुदाना ही उठ गया तो चले हर किसी से मिला करो कौन कैसा है कुछ पता तो चले
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