Saturday, 2 April 2016

पूरा दुख और आधा चांद

पूरा दुख और आधा चांद
हिज्र की शब और ऐसा चांद

इतने घने बादल के पीछे
कितना तनहा होगा चांद

मेरी करवट पर जाग उठे
नींद का कितना कच्चा चांद

सहरा सहरा भटक रहा है
अपने इश्क मे सच्चा चांद

रात के शायद एक बजे है
सोता होगा मेरा चांद

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