झरते चनारों के सूखे बागों पे लिखा है
तेरा नाम मोहब्बत की क़िताबों पे लिखा है...
आई थी तेरी याद शब-ए-ग़म तो रो लिए...
अश्कों के सूखने का समय चरागों पे लिखा है...
सदियों फ़िराक-ए-यार में जागे हैं रात भर
जलना मुकद्दर-ए-आफताबों पे लिखा है...
जलता है क्यूँ समंदर, है पानी में आग क्यूँ
झुलसती लहरों का ज़खम हबाबों पे लिखा है... (हबाब - बुलबुला)
आहट तेरी आती है यादों की गली से फिर
नींदों में चौंकने का सबब ख़्वाबों पे लिखा है...
क्यूँ डूबते हैं लोग नशे में ग़मों के संग
हर दर्द का अफसाना शराबों पे लिखा है...
छुप-छुप के पर्दों में ओ नश्तर चलाने वालों
नक्शा तुम्हारे चेहरों का हिज़ाबों पे लिखा है...
नासूर न सही लेकिन वो ज़ख्म तो था ही
किस्सा जो दिल के जलते हुए दाग़ों पे लिखा है...
उड़ने न दो कोई भी पंखुड़ी गुलों की देखो
ख़त हमने दिल के खून से गुलाबों पे लिखा है...
तेरा नाम मोहब्बत की क़िताबों पे लिखा है...
आई थी तेरी याद शब-ए-ग़म तो रो लिए...
अश्कों के सूखने का समय चरागों पे लिखा है...
सदियों फ़िराक-ए-यार में जागे हैं रात भर
जलना मुकद्दर-ए-आफताबों पे लिखा है...
जलता है क्यूँ समंदर, है पानी में आग क्यूँ
झुलसती लहरों का ज़खम हबाबों पे लिखा है... (हबाब - बुलबुला)
आहट तेरी आती है यादों की गली से फिर
नींदों में चौंकने का सबब ख़्वाबों पे लिखा है...
क्यूँ डूबते हैं लोग नशे में ग़मों के संग
हर दर्द का अफसाना शराबों पे लिखा है...
छुप-छुप के पर्दों में ओ नश्तर चलाने वालों
नक्शा तुम्हारे चेहरों का हिज़ाबों पे लिखा है...
नासूर न सही लेकिन वो ज़ख्म तो था ही
किस्सा जो दिल के जलते हुए दाग़ों पे लिखा है...
उड़ने न दो कोई भी पंखुड़ी गुलों की देखो
ख़त हमने दिल के खून से गुलाबों पे लिखा है...
No comments:
Post a Comment