Friday, 1 April 2016

यूं तेरी रहगुज़र से दिवानावार गुज़रे


यूं तेरी रहगुज़र से दिवानावार गुज़रे
कांधे पे अपने रख के अपना मज़ार गुज़रे

बैठे रहे हैं रास्ता में दिल का ख़ंडर सजा कर
शायद इसी तरफ़ से एक दिन बहार गुज़रे

बहती हुई ये नदिया घुलते हुए किनारे
कोई तो पार उतरे कोई तो पार गुज़रे

तू ने भी हमको देखा हमने भी तुमको देखा
तू दिल ही हार गुज़रा हम जान हार गुज़रे

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