अजब सी तेरी दुनिया के गज़ब देखे नज़ारे हैं
नहीं गज़ दो ज़मीं हांसिल, गगनचुंबी मीनारें हैं
आभूषण सजे हुए पाहन , ओढे चादर मज़ारें हैं
बाहर नंगे फकीरों की लगी लम्बी कतारें हैं
चढ़े छप्पन भोग मूरत पर, फल फूलों की बहारें हैं
कहीं भूखी निगाहें एक रोटी को निहारें हैं
ठिठुरती ज़िदगी ठंड में सिसकती सङक किनारे है
बने जिसमे हर कोने मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे हैं
न दी जिसने कभी रोटी, अपने माँ बाप को जीते जी
लगाए मरने के बाद उनके वही भोजन भंडारे है
पूजें ममता की मूरत जो वही ज़िन्दा बेटी मारे हैं
देखो जन्म दात्री ही जीवन को त्राहि - त्राहि पुकारे है
कोई निज सम्पत्ति समझे, रखे बंद सौ सौ पहरों में
कोई कहे बोझ है सिर का सैंकड़ों में धुतकारे है
नहीं नारी रही इंसान, नीलाम-ए-सामान हो गई
लगे बोली सरे बाजार और कीमत चंद दीनारें हैं
मिसालें एकता की जिनकी, ज़माने भर में थी मशहूर
खींची उनके आँगन में ही, नफरत की दीवारें हैं
सर्प ने दंश त्यागा है गिद्ध ने नोंचना छोङा
हुए इंसाँ के आगे, गिरगिट के फीके रंग सारे हैं
जहरीले जानवर बोले कि हम हैं खुद पर शर्मिंदा
ज़हर हममे भरा बस एक और इसमे कितने सारे हैं
अजब सी तेरी दुनिया के गज़ब देखे नज़ारे हैं
नहीं गज़ दो ज़मीं हांसिल, गगनचुंबी मीनारें हैं
नहीं गज़ दो ज़मीं हांसिल, गगनचुंबी मीनारें हैं
आभूषण सजे हुए पाहन , ओढे चादर मज़ारें हैं
बाहर नंगे फकीरों की लगी लम्बी कतारें हैं
चढ़े छप्पन भोग मूरत पर, फल फूलों की बहारें हैं
कहीं भूखी निगाहें एक रोटी को निहारें हैं
ठिठुरती ज़िदगी ठंड में सिसकती सङक किनारे है
बने जिसमे हर कोने मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे हैं
न दी जिसने कभी रोटी, अपने माँ बाप को जीते जी
लगाए मरने के बाद उनके वही भोजन भंडारे है
पूजें ममता की मूरत जो वही ज़िन्दा बेटी मारे हैं
देखो जन्म दात्री ही जीवन को त्राहि - त्राहि पुकारे है
कोई निज सम्पत्ति समझे, रखे बंद सौ सौ पहरों में
कोई कहे बोझ है सिर का सैंकड़ों में धुतकारे है
नहीं नारी रही इंसान, नीलाम-ए-सामान हो गई
लगे बोली सरे बाजार और कीमत चंद दीनारें हैं
मिसालें एकता की जिनकी, ज़माने भर में थी मशहूर
खींची उनके आँगन में ही, नफरत की दीवारें हैं
सर्प ने दंश त्यागा है गिद्ध ने नोंचना छोङा
हुए इंसाँ के आगे, गिरगिट के फीके रंग सारे हैं
जहरीले जानवर बोले कि हम हैं खुद पर शर्मिंदा
ज़हर हममे भरा बस एक और इसमे कितने सारे हैं
अजब सी तेरी दुनिया के गज़ब देखे नज़ारे हैं
नहीं गज़ दो ज़मीं हांसिल, गगनचुंबी मीनारें हैं
No comments:
Post a Comment