Saturday, 19 March 2016

टूटा फूटा , जर्जर हूँ

टूटा फूटा , जर्जर हूँ,
पता नहीं किसका घर हूँ.
मुझे अँधेरे पाल रहे,
अंधी आँखों का डर हूँ.
लिखो अगर तो हूँ कतरा,
पढ़ो तो एक समंदर हूँ.
फैला हूँ हर ओर मगर,
अपनी हद के अंदर हूँ.
मत गुस्से में उठा मुझे.
मैं पूजा का पत्थर हूँ.
मौंसम तन्हा छोड़ गए,
खेत हूँ लेकिन बंज़र हूँ.
सोता है अम्बर मुझमें,
मैं फकीर का बिस्तर हूँ.
जो भी हूँ, जैसा भी हूँ.
इस दुनिया से हटकर हूँ

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