Monday, 14 March 2016

खुमारी रात की उतरी नहीं,तो क्या कहूं तुमसे..!!

खुमारी रात की उतरी नहीं,तो क्या कहूं तुमसे..!!
कभी तुम सामने बैठो,
करूँ कुछ गुफ्तगूं तुमसे..!!
संज़ीदा तुम नहीं लगते,करूँ क्या आरजू तुमसे..!!
सुनाने को जुबां पर थे,
तरसते लफ्ज़ उल्फत के,
तुम्हें फुरसत नहीं है जब.,बयां कैसे करूं तुमसे..!!
सुना है बज़्म में पीने,
पिलाने का चलन है अब,
खुमारी रात की उतरी नहीं,तो क्या कहूं तुमसे..!!
कभी जब बात करते हो ,
तो गैरों की ही करते हो,
हमारा ज़िक्र है जिसमें नहीं,तो क्या सुनूं तुमसे..!!
नहीं सोंचा कभी शुरुवात,
होगी इस तरह अपनी,
ख़त्म होगी मेरे चाहत,की ऐसी जुस्तजूं तुमसे..!!
ज़माना देखकर "वीरान",
क्यों हैरान होते हो,
कहो दौलत उसे देकर,मोहब्बत छीन लूँ तुमसे..!

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