पतझड़ को खामोशी से बैठ कर मैंने देखा है
हर बिखरा पत्ता यहाँ अपनी कहानी कहता है
लाख छुपाऊं अपनों से अपना हर इक गम
हर इक अश्क यहाँ अपनी जुबानी कहता है
महफिलों में जो दब जाते हैं सबकी हाजिरी में
हर इक दर्द तन्हाई में अपनी रवानी में बहता है
न कर इजहारे दर्द ओ गम का कर्मेश जमाने से
हर इक शख्स तेरी बर्बादी की फ़िक्र में रहता है
हर बिखरा पत्ता यहाँ अपनी कहानी कहता है
लाख छुपाऊं अपनों से अपना हर इक गम
हर इक अश्क यहाँ अपनी जुबानी कहता है
महफिलों में जो दब जाते हैं सबकी हाजिरी में
हर इक दर्द तन्हाई में अपनी रवानी में बहता है
न कर इजहारे दर्द ओ गम का कर्मेश जमाने से
हर इक शख्स तेरी बर्बादी की फ़िक्र में रहता है
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