क्या बताएँ कि
ये दिल हमेशा रोता क्यूँ
है
बता तो
जरा तेरा बहस तल्ख़
होता क्यूँ
है
कभी
दीवानों को
जान पाएंगे
जमाने वाले
वो मन का कीचड़ सरे आम
धोता क्यूँ
है
लगता है
भूल गए हैं
लोग सपने भी
देखना
नहीं तो
फिर किस लिए
जमाना सोता क्यूँ है
लोग पूछेंगे
कि ये कौन नया
मसखरा आया
जानकर भी भाई-चारे
का बीज बोता क्यूँ है
तू भी
क्यों नहीं
निकलता भीड़
के रस्ते
बेकार बेआधार बिनाकाम चैन
खोता क्यूँ
है
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