मेरे लिए तो नहीं, गुनगुनी
धूप है
फिर किस लिए गुनगुनी धूप
है
चाय के कप, बूट पॉलिश
के ब्रश
कहीं और निकलती
गुनगुनी धूप
है
फटे पल्लू में पुँछे कैसे
पसीना
और पसरती हुई गुनगुनी धूप है
एसी और हीटर
के
इस दौर में
शर्म खा गई वो गुनगुनी धूप है
शहर की अट्टालिकाओं में
कबसे गुम चुकी
गुनगुनी धूप है
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