Wednesday, 23 March 2016

वसंत आया लगता है

लौट के क्यों वसंत आया लगता है
वही फिक्र ले वसंत आया लगता है

इस जमीं का पतझड़ गया ही नहीं
कोई ख्वाब में वसंत आया लगता है

भोंपू, भाषण, रैलियाँ, आम सभाएँ
वो पाँच साला वसंत आया लगता है

नयी हवा नहीं न नए कायदे हुए
ये बे फ़जूल वसंत आया लगता है

मंदिर मस्जिद हिंदू मुस्लिम फसाद
वक्त बे-वक्त वसंत आया लगता है

ठंड से न भूख से मौत की खबर थी
क्या सचमुच वसंत आया लगता है

ज़र्द पत्ते छाएँ हैं गुलों के मौसम में
इलाही, नया वसंत आया लगता है

बुझे चेहरों की शमा फिर जली,
ये बे-मौसम वसंत आया लगता है

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