कलम की स्याही यूँ निकल..रही है
मानो दिल की भावनाएँ पिघल रही है।
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ये दिल की बातें दिखावे-छलावे से दूर
अपनेआप ही जख़्म-ए-मरहम कर रही है।
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बेधड़क अनकही बातें मचल.. रही है
कलम दर्द-ए-दिल आग उगल रही है।
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अश्को की बाढ़ शब्दों से संभल रही है
बैचैनियत मोती सी शक्शियत बुन रही है।
मानो दिल की भावनाएँ पिघल रही है।
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ये दिल की बातें दिखावे-छलावे से दूर
अपनेआप ही जख़्म-ए-मरहम कर रही है।
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बेधड़क अनकही बातें मचल.. रही है
कलम दर्द-ए-दिल आग उगल रही है।
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अश्को की बाढ़ शब्दों से संभल रही है
बैचैनियत मोती सी शक्शियत बुन रही है।
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