Thursday, 17 March 2016

नन्हीं आहें



मिटाके नाम यूं मेरा बता माँ चैन कितना मिला;
गिरा जो फूल डाली से नहीं फिर वो कभी है खिला।
छिपाती दर्द है अपने लगाती क्यों ना तू गले;
मेरी नन्हीं सी हैं आहें करें नैना हिया से गिला ।।
हिले धरती का यह आंगन डुलायेमान हो अम्बर;
परी नन्हीं की सुन चीखें बनी पागल लहर सुन्दर।
चुभन की टीस सी उठती दरारें बन के घाटी में;
बडा निर्मम नहीं पिघले ये मानव मन का है अन्दर।।
दुआएं देती हूँ उनको जो मुझको चीर देते है;
मेरे नन्हें से अंगों को जो कचरा मान लेते है।
भला चाहूंगी मैं हर पल सदा उन माँ-बहनों का;
दबावों को सहन करके जो जीवनदान देतें है।।

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