साहिल छू के लौटा दरिया ,फिर सन्नाटे ,
दूर-दूर तक फैला सहरा , फिर सन्नाटे ,
चहकेगी तो मन बहलेगा सोचा मैंने,
याद दिला कर उड़ गयी चिड़िया,फिर सन्नाटे .
खोली खिड़की बोल रहा था सारा आलम ,
बंद किया जैसे ही कमरा , फिर सन्नाटे .
धूप ,हवा थी,सागर भी था,और थी कश्ती,
आँख खुली तो टूटा सपना, फिर सन्नाटे .
चंद पुरानी यादें लेकर आया कोई,
मेरा नाम मुझी से पूछा , फिर सन्नाटे .
काला कम्बल ओढ़ अँधेरे घर आये थे,
खली कुण्डी ,भोंका कुत्ता , फिर सन्नाटे .
वही आरज़ू ,वही मुहब्ब्बत ,वही जुदाई ,
वही पुराना लंबा रस्ता , फिर सन्नाटे
दूर-दूर तक फैला सहरा , फिर सन्नाटे ,
चहकेगी तो मन बहलेगा सोचा मैंने,
याद दिला कर उड़ गयी चिड़िया,फिर सन्नाटे .
खोली खिड़की बोल रहा था सारा आलम ,
बंद किया जैसे ही कमरा , फिर सन्नाटे .
धूप ,हवा थी,सागर भी था,और थी कश्ती,
आँख खुली तो टूटा सपना, फिर सन्नाटे .
चंद पुरानी यादें लेकर आया कोई,
मेरा नाम मुझी से पूछा , फिर सन्नाटे .
काला कम्बल ओढ़ अँधेरे घर आये थे,
खली कुण्डी ,भोंका कुत्ता , फिर सन्नाटे .
वही आरज़ू ,वही मुहब्ब्बत ,वही जुदाई ,
वही पुराना लंबा रस्ता , फिर सन्नाटे
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