Friday, 18 March 2016

मुझको काला गुलाब कहता है

वो मुझे लाज़वाब कहता है,
ज़िन्दगी का हिसाब कहता है.
रंग-ख़ुशबू को छेड़ने के लिए,
मुझको काला गुलाब कहता है.
जब भी पढता है मुझको फुर्सत में,
ख़ूबसूरत क़िताब कहता है.
बंद करता है अपनी पलकों को,
और फिर मुझको ख्व़ाब कहता है.
मुझको ताज़ा नशा बता कर वो,
इक पुरानी शराब कहता है.
अपना चेहरा छिपा के वो मुझमें ,
मुझको अपना नक़ाब कहता है.
पूछता है सवाल ख़ुद से ही,
और मुझको जवाब कहता है.

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