Tuesday, 15 March 2016

फर्श पे आज हैं जो कल शिखर पा जाते हैं।

फर्श पे आज हैं जो कल शिखर पा जाते हैं।
मुद्दत से बदहाल यकदम निखर जाते हैं।
गर्दिश में जब आते हैं सितारे बशर के,
सोए हुए ज जज्बात बिखर जाते हैं।
कदम इक बार बहक जाएं अगर,
गिरते गिरते दूर तक गिर जाते हैं।
वक्त के मिजाज बदलाव में रहते हैं मुसलसल,
गमो- खुशी सदा न इस, न उस दर रह पाते हैं।
दुनिया को झमेला जो मानते हैं अहमक,
न इसके रहते हैं न ऊपर बसर पाते हैं।
बन्दगी ए खुदा का दामन जो थाम लेते हैं,
बिन सफीना औ पतवार वैतरणी तर जाते हैं।
दरियाए नुक्ताचीनी में ही डूबते तैरते लोग,
न साहिल तक पहुंचते, न गौहर पाते हैं।
आगोशे महबूबा में जो सूकन हासिल है,
उसके मुकाबिल न फरिश्ते,न कलन्दर पाते हैं।
आहिस्ता आहिस्ता समझा ये राज तहलान,
जो यहां खीर देखते हैं, वहां शक्कर पाते हैं।

No comments:

Post a Comment