अपनी कुरूपताओं
का भी गुमाँ
कीजिए
दूसरो से पहले खुद पे हँसा
कीजिए
या तो उठाइये आप
भी कोई पत्थर
या अपनी
क़िस्मत पे
रोया
कीजिए
सफलता
के पैमाने बदल
चुके हैं अब
भ्रष्टाचार
भाई-भतीजावाद
बोया कीजिए
मुल्क
की गंगा में धोए हैं सबने हाथ
बढ़िया है आप भी
पोतड़े धोया
कीजिए
खूब भर
रहे हो अपनी कोठियाँ
उम्र
चार दिन की
क्या क्या
कीजिए
No comments:
Post a Comment