Thursday, 17 March 2016

भ्रूण का शाप



बेटे की चाहत में तुमने कैसा अत्याचार किया।
लोक लाज को छोड़ा तुमने जिन्दा मुझको मार दिया।
तेरे आँगन में खुशियों के फूल नहीं खिलने दूँगी।
तेरी अँधियारी रातों में दीप नहीं जलने दूँगी।
मेरा सपना था सागर की लहरों पर चलकर देखूँ,
आसमान में बादल के सँग राहों में उड़कर देखूँ।
गोदी में लोरी सुनने का ख्बाव अधूरा टूट गया।
जग के खेल तमाशे औ’ संसार अधूरा छूट गया।
तेरे सिन्दूरी सपनों में रंग नहीं भरने दूँगी।
तेरी अँधियारी रातों में दीप नहीं जलने दूँगी।
मैं बादल की स्वाँति बूँद थी लेकिन तुमने छोड़ दिया।
सीपी ने मोती बनने से पहले मुझको तोड़ दिया।
निष्ठुर ममता ने खुद अपना अंश जगत से हटा दिया।
सागर की गहराइयों ने अस्तित्व ये मेरा मिटा दिया।
तेरे अन्दर पीडा का अहसास नहीं मरने दूँगी।
तेरी अँधियारी रातों में दीप नहीं जलने दूँगी।
सच मानो माँ आज खुशी से तेरा आँचल भर देती।
मुझको जन्म दिया होता तो प्राण न्योछावर कर देती।
जिसकी खातिर तुमने सारे जग का मेला जोड़ दिया।
उस बेटे ने जीवन पथ पर तुम्हें अकेला छोड़ दिया।
तेरे दामन के बेशर्मी घाव नहीं भरने दूँगी।
तेरी अँधियारी रातों में दीप नहीं जलने दूँगी।
अगर कहीं लड़ जातीं तुम तो शायद मैं बच जाती माँ।
मेरे भी कोमल हाथों पर मेंहदी सी रच जाती माँ।
तेरी ममता का निर्झर क्या मेरी खातिर सूख गया,
क्या तेरा कोमल हृदय भी पत्थर बन कर टूट गया।
तुझको तेरी गलती का पश्चाताप नहीं करने दूँगी।
तेरी अँधियारी रातों में दीप नहीं जलने दूँगी।।

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