दर्द की आग न हो तो मैं जी न पाऊंगा
अश्क की आब न हो तो मैं जल जाऊंगा
वो शायरी है, गजल है या फसाना है
जाने कब तक मैं उसको समझ पाऊंगा
धुंध सी शाम है बरसों से मेरे जीवन में
रात कब होगी, कब चांद को छू पाऊंगा
ऐसा लगता है कि न आएगी पास कभी
यूं ही तन्हाई में घुटते हुए मर जाऊंगा
अश्क की आब न हो तो मैं जल जाऊंगा
वो शायरी है, गजल है या फसाना है
जाने कब तक मैं उसको समझ पाऊंगा
धुंध सी शाम है बरसों से मेरे जीवन में
रात कब होगी, कब चांद को छू पाऊंगा
ऐसा लगता है कि न आएगी पास कभी
यूं ही तन्हाई में घुटते हुए मर जाऊंगा
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