मन जब मुझमें बादल सा हो जाता है,
मोरों का कोलाहल सा हो जाता है.
तुम मुझ में महसूस नहीं होते हो जब,
मुझ में कोई पागल सा हो जाता है.
तुम जब गज़लें गाते हो,हर शेर मेरा,
नयी दुल्हन की पायल सा हो जाता है.
बिन तेरे अहसासों के,ये बदन मेरा ,
दरवाज़े की साँकल सा हो जाता है.
तपन जुदाई की कुछ ऐसी है जिसमें,
तन सोने का,पीतल सा हो जाता है.
मेरे अन्दर के मौसम से घबरा कर,
वो क्यूँ सूखे पीपल सा हो जाता है.
बच्चे जैसा आता है जब ख्व़ाब कोई,
माँ का आँचल मखमल सा हो जाता है.
मोरों का कोलाहल सा हो जाता है.
तुम मुझ में महसूस नहीं होते हो जब,
मुझ में कोई पागल सा हो जाता है.
तुम जब गज़लें गाते हो,हर शेर मेरा,
नयी दुल्हन की पायल सा हो जाता है.
बिन तेरे अहसासों के,ये बदन मेरा ,
दरवाज़े की साँकल सा हो जाता है.
तपन जुदाई की कुछ ऐसी है जिसमें,
तन सोने का,पीतल सा हो जाता है.
मेरे अन्दर के मौसम से घबरा कर,
वो क्यूँ सूखे पीपल सा हो जाता है.
बच्चे जैसा आता है जब ख्व़ाब कोई,
माँ का आँचल मखमल सा हो जाता है.
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