Wednesday, 16 March 2016

मैं ठंडी हूँ बरफ जैसी हरारत दे नहीं सकती

मैं ठंडी हूँ बरफ जैसी हरारत दे नहीं सकती।
है ख़ाबों में बसर मेरा हकीकत दे नहीं सकती।
मैं अपने आप में खुश हूँ न छेड़ो तुम ज़रा सा भी ,
तजुर्बा है मुझे फिर भी नसीहत दे नहीं सकती।
मुझे तुम से मुहब्बत है कसम ले लो किसी की भी ,
मगर हद पार करने की इजाज़त दे नहीं सकती।
लिखा है जो हथेली पर विधाता ने लकीरों में ,
मिटाकर के उसे खुद की इबारत दे नहीं सकती।
यकीं करती हूँ मैं तुम पर भरोसा खुद से ज्यादा है ,
अभी इस बात की लेकिन जमानत दे नहीं सकती।
नज़र से गिर गया कोई अगर इक बार भी मेरे ,
बदल जाए वो कितना भी मैं इज्जत नहीं सकती।
किया है जुर्म जिसने भी सज़ा उसको मिलेगी ही ,
मुआफ़ी लिए उसको मैं मोहलत दे नहीं सकती।
खिलौने की तरह जिसकी नजर में एक औरत है ,
उसी के हाथ में अपनी हिफाजत दे नहीं सकती।
वफ़ा के नाम पर हर दम मिली है बेवफाई ही ,
सुकूं उसको जमाने की शरा फ त दे नहीं सकती।

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