मैं ठंडी हूँ बरफ जैसी हरारत दे नहीं सकती।
है ख़ाबों में बसर मेरा हकीकत दे नहीं सकती।
मैं अपने आप में खुश हूँ न छेड़ो तुम ज़रा सा भी ,
तजुर्बा है मुझे फिर भी नसीहत दे नहीं सकती।
है ख़ाबों में बसर मेरा हकीकत दे नहीं सकती।
मैं अपने आप में खुश हूँ न छेड़ो तुम ज़रा सा भी ,
तजुर्बा है मुझे फिर भी नसीहत दे नहीं सकती।
मुझे तुम से मुहब्बत है कसम ले लो किसी की भी ,
मगर हद पार करने की इजाज़त दे नहीं सकती।
लिखा है जो हथेली पर विधाता ने लकीरों में ,
मिटाकर के उसे खुद की इबारत दे नहीं सकती।
यकीं करती हूँ मैं तुम पर भरोसा खुद से ज्यादा है ,
अभी इस बात की लेकिन जमानत दे नहीं सकती।
नज़र से गिर गया कोई अगर इक बार भी मेरे ,
बदल जाए वो कितना भी मैं इज्जत नहीं सकती।
किया है जुर्म जिसने भी सज़ा उसको मिलेगी ही ,
मुआफ़ी लिए उसको मैं मोहलत दे नहीं सकती।
खिलौने की तरह जिसकी नजर में एक औरत है ,
उसी के हाथ में अपनी हिफाजत दे नहीं सकती।
वफ़ा के नाम पर हर दम मिली है बेवफाई ही ,
सुकूं उसको जमाने की शरा फ त दे नहीं सकती।
मगर हद पार करने की इजाज़त दे नहीं सकती।
लिखा है जो हथेली पर विधाता ने लकीरों में ,
मिटाकर के उसे खुद की इबारत दे नहीं सकती।
यकीं करती हूँ मैं तुम पर भरोसा खुद से ज्यादा है ,
अभी इस बात की लेकिन जमानत दे नहीं सकती।
नज़र से गिर गया कोई अगर इक बार भी मेरे ,
बदल जाए वो कितना भी मैं इज्जत नहीं सकती।
किया है जुर्म जिसने भी सज़ा उसको मिलेगी ही ,
मुआफ़ी लिए उसको मैं मोहलत दे नहीं सकती।
खिलौने की तरह जिसकी नजर में एक औरत है ,
उसी के हाथ में अपनी हिफाजत दे नहीं सकती।
वफ़ा के नाम पर हर दम मिली है बेवफाई ही ,
सुकूं उसको जमाने की शरा फ त दे नहीं सकती।
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